पियूष पांडे (1955–2025): भारतीय विज्ञापन जगत के महानायक की अमर विरासत

पियूष पांडे (1955–2025): भारतीय विज्ञापन जगत के महानायक की अमर विरासत

भारतीय विज्ञापन जगत का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, पियूष पांडे का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगा। पियूष पांडे न केवल एक विज्ञापन विशेषज्ञ थे, बल्कि वे भारतीय रचनात्मकता के प्रतीक, आम लोगों की भाषा में बात करने वाले शब्दों के जादूगर और भावनाओं को ब्रांड से जोड़ने वाले कलाकार थे।
पियूष पांडे ने अपनी कल्पनाशील सोच और देसी अंदाज़ से विज्ञापन की दिशा और दशा दोनों बदल दी। 23 अक्टूबर 2025 को मुंबई में उनका निधन हुआ, लेकिन उन्होंने जो रचनात्मक विरासत छोड़ी, वह सदियों तक याद की जाएगी।

पियूष पांडे का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

पियूष पांडे का जन्म 5 सितंबर 1955 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुआ था। वे नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे—सात बहनें और दो भाई। उनके परिवार में कला और संगीत का गहरा माहौल था। उनके भाई प्रसून पांडे प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक हैं, जबकि बहन इला अरुण देश की जानी-मानी गायिका और अभिनेत्री हैं।

उनके पिता राजस्थान राज्य सहकारी बैंक में कार्यरत थे। बचपन से ही पियूष पांडे में खेल और रचनात्मकता दोनों के प्रति झुकाव था। वे एक उत्कृष्ट क्रिकेट खिलाड़ी थे और राजस्थान रणजी ट्रॉफी टीम का हिस्सा भी रहे।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, जयपुर से पूरी की और फिर सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक (M.A.) की डिग्री हासिल की।

विज्ञापन जगत में आने से पहले उन्होंने कुछ समय तक टी टेस्टर के रूप में भी काम किया। वर्ष 2000 में उन्होंने नीता पांडे से विवाह किया। यह जीवन-यात्रा उनके मानवीय, ज़मीनी और जिज्ञासु स्वभाव को गहराई से दर्शाती है।

पियूष पांडे का करियर: ओगिल्वी से विश्व तक का सफर

पियूष पांडे ने 1982 में Ogilvy India से अपने करियर की शुरुआत की। पहले वे क्लाइंट सर्विसिंग एग्जीक्यूटिव थे, लेकिन जल्द ही उनकी रचनात्मक प्रतिभा ने उन्हें विज्ञापन लेखन की दुनिया में पहचान दिला दी।
उनका पहला विज्ञापन Sunlight Detergent के लिए था। 1988 में उन्होंने क्रिएटिव विभाग में प्रवेश किया और वहीं से शुरू हुई उनकी जादुई यात्रा।

नेतृत्व की ऊँचाइयाँ

  • 1994 में वे Ogilvy India Board के सदस्य बने।
  • लगातार 12 वर्षों तक Ogilvy India को देश की शीर्ष विज्ञापन एजेंसी बनाए रखा।
  • 2006 में वे Ogilvy Worldwide Board में शामिल हुए और बर्लिन स्कूल ऑफ क्रिएटिव लीडरशिप में युवा प्रतिभाओं के मार्गदर्शक बने।
  • 2019 से 2021 तक वे Chief Creative Officer Worldwide और Executive Chairman (India) रहे।
  • 2023 में उन्होंने Chief Advisor के रूप में ज़िम्मेदारी संभाली।

चार दशकों तक चली इस यात्रा में पियूष पांडे ने न केवल ब्रांड्स बनाए, बल्कि पूरे उद्योग की सोच को पुनर्परिभाषित किया।

पियूष पांडे की प्रसिद्ध कैंपेन: जो भारत के दिल में बस गए

पियूष पांडे के विज्ञापन सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते थे — वे कहानियाँ कहते थे।
उनकी हर लाइन, हर दृश्य भारत की आत्मा से जुड़ी थी।

Fevicol – “जोड़ ऐसा कि टूटे नहीं”

Fevicol के “बस”, “सोफा”, और “अंडा” वाले विज्ञापन आज भी याद किए जाते हैं। उन्होंने Fevicol को सिर्फ गोंद नहीं, बल्कि “अटूट रिश्तों का प्रतीक” बना दिया।

Cadbury Dairy Milk – “कु छ खास है जिंदगी में”

यह विज्ञापन भारतीय पॉप कल्चर का हिस्सा बन गया। एक साधारण लड़की का मैदान में नाचना आज भी भारतीय उपभोक्ता के मन में खुशी जगाता है।

Vodafone – “Happy to Help” और ZooZoos

Vodafone Pug और ZooZoo कैरेक्टर ने विज्ञापन जगत में क्रिएटिविटी की नई परिभाषा दी। यह दिखाया कि बिना शब्दों के भी भावनाएँ बोली जा सकती हैं।

Asian Paints – “हर घर कुछ कहता है”

इस कैंपेन में पियूष पांडे ने घरों को इंसानों की तरह भावनाओं से जोड़ा। यह विज्ञापन कला और संवेदना का अनोखा संगम था।

Public Service Campaigns

  • पोलियो अभियान (Amitabh Bachchan) – “दो बूंद ज़िंदगी की।”
  • “Mile Sur Mera Tumhara” – राष्ट्रीय एकता का प्रतीक गीत।
  • “Bell Bajao” – घरेलू हिंसा के खिलाफ संदेश।
  • Anti-Smoking अभियान – संवेदनशील और विचारोत्तेजक प्रस्तुतियाँ।

राजनीतिक और पर्यटन अभियानों में योगदान

पियूष पांडे ने 2014 के “अबकी बार मोदी सरकार” अभियान को रचा, जो भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे प्रभावशाली नारा बना।
उन्होंने Gujarat Tourism के लिए “Khushboo Gujarat Ki” जैसे यादगार विज्ञापन भी बनाए।

अन्य रचनात्मक पहलें और लेखन

पियूष पांडे केवल विज्ञापन जगत तक सीमित नहीं थे। उन्होंने लेखन और फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा दिखाई।

  • “Bhopal: A Prayer for Rain” (2014) फिल्म के सह-लेखक रहे।
  • “Pandeymonium” (2015) और “Open House with Piyush Pandey” (2022) नामक पुस्तकों के लेखक।
  • 2013 की फिल्म “Madras Cafe” में उन्होंने कैमियो भूमिका भी निभाई।

पुरस्कार और उपलब्धियाँ

पियूष पांडे ने अपने जीवन में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते, जिनमें शामिल हैं:

  • Cannes Lions Lifetime Achievement Award
  • 2024 LIA Legend Award
  • Padma Shri (2016) – भारतीय सृजनशीलता के प्रति उनके योगदान के लिए
  • अनेक Abby Awards, Clio Awards और Asia-Pacific Adfest Awards

वे पहले एशियाई थे जिन्होंने Cannes Lions Jury President का पद संभाला।
यह उपलब्धि भारतीय विज्ञापन की वैश्विक मान्यता का प्रतीक बनी।

पियूष पांडे की सोच: “देसीपन में ही असली कनेक्शन है”

पियूष पांडे का मानना था कि भारत की ताकत उसकी भाषाओं और संस्कृतियों में है।
उनके विज्ञापन हमेशा हिंदी, बोली-बानी, और स्थानीय संदर्भों से जुड़े होते थे।
वे कहते थे –

“अगर विज्ञापन लोगों की भाषा नहीं बोलेगा, तो लोग उससे रिश्ता नहीं बनाएंगे।”

उन्होंने यह साबित किया कि क्रिएटिविटी अंग्रेज़ी में नहीं, भावनाओं में होती है

विज्ञापन जगत पर प्रभाव

पियूष पांडे ने भारत के हर उभरते विज्ञापन लेखक को सिखाया कि ब्रांड्स को बेचना नहीं, महसूस कराना चाहिए
उनकी टीम में काम करने वाले अनेक युवा आज देश-विदेश में शीर्ष पदों पर हैं।
उनकी सोच, सादगी और ह्यूमर ने भारतीय विज्ञापन की आत्मा को आकार दिया।

मृत्यु और श्रद्धांजलियाँ

23 अक्टूबर 2025 को पियूष पांडे का मुंबई में निधन हुआ। उनकी बहन इला अरुण ने बताया कि वे लंबे समय से अस्वस्थ थे।
उनकी मृत्यु की खबर पर पूरा विज्ञापन जगत, फिल्म उद्योग और देशभर के लोग भावुक हो उठे।

शाहरुख खान ने ट्वीट किया –

“वो शख्स, जिसने हमें हँसाया, सोचने पर मजबूर किया और हर विज्ञापन में ज़िंदगी का स्वाद भर दिया।”

Ogilvy India ने कहा –

“वो आदमी जिसने क्रिएटिविटी को लोगों के दिलों में जिंदा कर दिया।”

पियूष पांडे की विरासत

पियूष पांडे का योगदान सिर्फ विज्ञापन तक सीमित नहीं था। उन्होंने भारतीय सोच में एक आत्मविश्वास जगाया कि हम अपनी भाषा में भी विश्व स्तरीय रचनाएँ कर सकते हैं।
उनकी बनाई दुनिया में ह्यूमर, इमोशन और देशीपन एक साथ चलते हैं।

पियूष पांडे का नाम भारतीय विज्ञापन के “Amul of Creativity” के रूप में हमेशा जिंदा रहेगा।

पियूष पांडे एक युग थे। उन्होंने यह सिखाया कि विज्ञापन केवल बेचने का माध्यम नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने की कला है।
उनकी बनाई हर लाइन, हर फ्रेम आज भी भारत की आत्मा से बात करती है।
उनकी अनुपस्थिति से जो खालीपन आया है, वह भरना असंभव है, लेकिन उनकी रचनाएँ, किताबें और विचार हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।

Subhash Shekhar

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