UPSC के सवाल से उठा विवाद, पेरियार की जाति का उल्लेख बना बहस का कारण

UPSC के सवाल से उठा विवाद, पेरियार की जाति का उल्लेख बना बहस का कारण

चेन्नई: UPSC द्वारा आयोजित सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सामाजिक न्याय के अग्रदूत पेरियार को लेकर पूछे गए एक सवाल ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। 25 मई को आयोजित इस परीक्षा में “आत्मसम्मान आंदोलन” के संस्थापक के संबंध में एक बहुविकल्पीय प्रश्न था, जिसमें पेरियार, भीमराव आंबेडकर, भास्कर राव जाधव और दिनकर राव जावलकर के नाम विकल्प के रूप में दिए गए थे।

लेकिन विवाद की जड़ इस सवाल में पेरियार के नाम के साथ उनकी जाति का उल्लेख होना बना। इस विवरण को लेकर राजनीतिक गलियारों में नाराजगी देखी जा रही है। खासकर तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK ने इसे संघ लोक सेवा आयोग की “बचकानी और निंदनीय” हरकत बताया।

पेरियार की विचारधारा के विपरीत UPSC की गलती

पेरियार, जिन्हें जाति प्रथा और छुआछूत के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए जाना जाता है, ने जीवन भर जातिगत पहचान के खिलाफ अभियान चलाया। 1929 के पहले आत्मसम्मान सम्मेलन में उन्होंने ऐलान किया था कि नाम के साथ जाति का प्रतीक हटाया जाएगा।

DMK छात्र संघ के सचिव राजीव गांधी ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि UPSC जैसी प्रतिष्ठित संस्था से इस तरह की गलती की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि पेरियार की जाति का उल्लेख करना न केवल उनके सिद्धांतों का अपमान है, बल्कि यह एक बार फिर जाति आधारित पहचान को बढ़ावा देने जैसा है।

पेरियार की विचारधारा के विपरीत upsc की गलती

“कुडी अरासु” और सामाजिक बदलाव की मिसाल

राजीव गांधी ने पेरियार द्वारा प्रकाशित पत्रिका “कुडी अरासु” का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अपने लेखन में कभी जाति सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं किया। यह एक बड़ा सामाजिक संदेश था, जिसे तमिलनाडु की जनता ने स्वीकारा और अपने नामों से जाति के प्रतीकों को हटाना शुरू किया।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पेरियार के योगदान को जातीय खांचे में बांधना, उनके जीवन की मूल भावना के खिलाफ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि UPSC जैसी संस्था द्वारा यह गलती दोहराई जा रही है।

बार-बार की जा रही गलती या जानबूझकर प्रयास?

यह पहली बार नहीं है जब UPSC पर इस तरह के आरोप लगे हैं। पहले भी आयोग द्वारा परीक्षा में पेरियार के नाम के साथ जाति का उल्लेख किया गया था, जिसकी आलोचना हुई थी। अब जबकि एक बार फिर ऐसा हुआ है, तो सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सिर्फ अज्ञानता है या कोई जानबूझकर किया गया प्रयास?

राजनीतिक हलकों में यह बहस तेज हो गई है कि UPSC जैसी संस्था, जो देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पदों के लिए चयन करती है, उसे अधिक संवेदनशीलता और ऐतिहासिक समझदारी दिखानी चाहिए।

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Subhash Shekhar

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