एमजीएम हादसा: झारखंड की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की दर्दनाक तस्वीर

एमजीएम हादसा: झारखंड की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की दर्दनाक तस्वीर

झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में से एक एमजीएम अस्पताल जमशेदपुर में हुई दिल दहला देने वाली दुर्घटना ने राज्य की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई को उजागर कर दिया है। शनिवार की दोपहर 3:20 बजे एमजीएम के मेडिसिन विभाग में तीन मंजिला कॉरिडोर अचानक भरभराकर गिर पड़ा। इस हादसे में तीन लोगों की जान चली गई और कई अन्य मलबे के नीचे दब गए। एमजीएम हादसा सिर्फ एक इमारत के गिरने का मामला नहीं था, यह उस लापरवाही और भ्रष्ट सिस्टम का मलबा था जो सालों से झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी पड़ रहा है।

मौत की दीवारें और बेजान संवेदनाएं

एमजीएम अस्पताल का वह हिस्सा जहां लावारिस और असहाय मरीज ज़िंदगी की उम्मीद लिए पड़े थे, अचानक मौत का घर बन गया। तीसरी मंजिल का कॉरिडोर गिरते ही दूसरी और फिर पहली मंजिल भी मलबे में समा गई। चीख-पुकार, भगदड़ और अफरा-तफरी के बीच लोगों की ज़िंदगियाँ कुछ ही सेकेंड में खामोश हो गईं।

क्या यह है झारखंड का स्वास्थ्य मॉडल?

यह हादसा कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले रिम्स में कफ़न तक की व्यवस्था न होने की खबरें आईं थीं। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत यह है कि रांची के रिम्स अस्पताल में 2022 में 18 ऐसे मामले सामने आए जहां मृतकों को कफ़न तक नसीब नहीं हुआ। राज्य सरकार को मजबूरन “कफ़न योजना” शुरू करनी पड़ी। यह विडंबना है कि जहां जीते जी इलाज नहीं मिलता, वहां मरने के बाद कफ़न जरूर मिलता है।

आंकड़े बोलते हैं: क्यों लोग सरकारी अस्पतालों से भागते हैं?

2023 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के 62% लोग इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। वजह साफ है—60% सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है, 40% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक्स-रे मशीन तक नहीं है, और सामुदायिक केंद्रों में ऑक्सीजन की नियमित आपूर्ति भी सुनिश्चित नहीं है। इन सबके बीच सवाल उठता है कि जब सुविधाएं ही नहीं हैं, तो सरकारी अस्पतालों का मतलब क्या रह जाता है?

मंत्री जी, अब नहीं सिर्फ मुआवजे की जरूरत है

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने घटनास्थल पर पहुंच कर मृतकों के परिजनों को 5 लाख और घायलों को 50 हजार रुपये की सहायता की घोषणा की। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुआवजा उन परिवारों की पीड़ा को कम कर सकता है? क्या संवेदनशीलता सिर्फ हादसे के बाद कैमरे के सामने खड़े होने से दिखाई जाती है?

कैग रिपोर्ट भी चेतावनी दे चुकी है

मार्च 2022 की कैग रिपोर्ट में झारखंड की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की जर्जर स्थिति को रेखांकित किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी के कारण ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वालों को इलाज के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अस्पतालों की इमारतें तो बनी हैं, पर उनमें जरूरी मानव संसाधन और उपकरणों का भारी अभाव है।

हादसे पहले क्यों नहीं चेती सरकार?

इस सवाल का जवाब अब तक किसी के पास नहीं है कि एमजीएम जैसे बड़े अस्पताल में गिरने की नौबत क्यों आई? क्यों समय रहते निरीक्षण नहीं हुआ? क्यों सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई? हादसे के बाद सक्रियता और जांच कमेटियों की घोषणाएं किसी की जान वापस नहीं ला सकतीं।

नतीजा क्या निकलेगा?

एमजीएम हादसा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि कब तक झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था कागजों में ही बेहतर बनी रहेगी? क्या हर मौत एक नई “जांच रिपोर्ट” बनकर रह जाएगी? जब तक अस्पतालों को संसाधनों, स्टाफ और जवाबदेही से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।


निष्कर्ष:
एमजीएम हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि झारखंड की असफल स्वास्थ्य व्यवस्था का जीवंत प्रमाण है। सवाल अब सिर्फ यह नहीं कि हादसा क्यों हुआ, बल्कि यह भी है कि अगला हादसा किस अस्पताल में होगा? क्या झारखंड सरकार समय रहते सबक लेगी या फिर एक और दुखद अध्याय जुड़ जाएगा?

आपकी राय क्या है? क्या आपने भी सरकारी अस्पतालों की बदहाली देखी है? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर साझा करें।

Subhash Shekhar

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