घोटाले में कई बड़े अधिकारी और कंपनियां संदेह के घेरे में
झारखंड सरकार के उत्पाद विभाग में शराब दुकानों के संचालन से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है। नई शराब नीति के तहत राज्य सरकार बीते तीन वर्षों से शराब बिक्री का संचालन कर रही थी, लेकिन अब इस प्रक्रिया में बैंक गारंटी घोटाले का खुलासा हुआ है। इसमें उच्च अधिकारियों और निजी कंपनियों की मिलीभगत का संदेह जताया जा रहा है।
पिछले तीन वर्षों में उत्पाद विभाग में छह मंत्रियों, नौ कमिश्नरों और पांच सचिवों का तबादला हो चुका है। इस घोटाले के बाद अब जांच एजेंसियों की नज़र इस पर टिकी है कि किसकी भूमिका इसमें सबसे अहम थी।
JSBCL द्वारा नियुक्त कंपनियों पर फर्जीवाड़े का आरोप
झारखंड राज्य बिवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (JSBCL) ने शराब दुकानों के संचालन के लिए Marsan Innovative Security Pvt. Ltd. और Vision Hospitality Service & Consultants Pvt. Ltd. नाम की दो मानव संसाधन एजेंसियों को नियुक्त किया था। अब इन कंपनियों पर फर्जी बैंक गारंटी जमा करने का गंभीर आरोप लगा है। इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने और कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने की मांग तेज हो गई है।

तीन साल में कई प्रशासनिक बदलाव, जांच होगी रोचक
इस घोटाले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पिछले तीन वर्षों में उत्पाद विभाग के कई उच्च पदों पर बदलाव हुए हैं। दिवंगत मंत्री जरगरनाथ महतो, हेमंत सोरेन, बेबी देवी, मिथिलेश ठाकुर, बैजनाथ राम इस विभाग के मंत्री रह चुके हैं, जबकि वर्तमान में योगेंद्र प्रसाद इस पद पर हैं। इसी अवधि में विभाग के सचिव और कमिश्नर भी कई बार बदले गए हैं।
कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत का शक
इस पूरे मामले में संदेह जताया जा रहा है कि कंपनियों के डायरेक्टर और उनके प्रतिनिधियों ने विभागीय अधिकारियों के साथ मिलकर घोटाले को अंजाम दिया है। जांच में यह स्पष्ट हो जाएगा कि इसमें किन लोगों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता रही है।
वर्तमान में विभाग के कमिश्नर विजय कुमार सिन्हा हैं, जबकि पूर्व में इस पद पर विनय चौबे, अमित कुमार, करन सत्यार्थी, सुनील कुमार सिंह, फैज अहमद, कमलेश्वर प्रसाद सिंह और अमित प्रकाश जैसे अधिकारी रह चुके हैं। इनके कार्यकाल में घोटाले की योजना बनाई गई या इसे अंजाम दिया गया, यह जांच का विषय होगा।
विपक्ष का हमला, सरकार पर जवाबदेही का दबाव
इस मामले के उजागर होने के बाद विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर सीधा हमला बोला है। विपक्ष का कहना है कि अगर इतने लंबे समय से यह घोटाला चल रहा था, तो आखिर सरकार ने इसे रोकने के लिए पहले कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जांच किस दिशा में आगे बढ़ती है और क्या इस घोटाले के दोषियों को सज़ा मिलती है या फिर मामला राजनीतिक उलझनों में फंसकर दबा दिया जाता है।
बैंक गारंटी घोटाला: कैसे हुआ पर्दाफाश?
JSBCL ने 2022 में राज्य की शराब दुकानों के संचालन के लिए सात मानव संसाधन एजेंसियों को चुना था। इनमें से Marsan Innovative Security Pvt. Ltd. और Vision Hospitality Service & Consultants Pvt. Ltd. ने हजारीबाग और धनबाद जिलों में काम करने के लिए अनुबंध हासिल किया था।
बाद में पता चला कि इन कंपनियों ने फर्जी बैंक गारंटी जमा की थी। कोलकाता और दिल्ली स्थित बैंक शाखाओं ने इस गारंटी को अमान्य घोषित कर दिया। 31 जनवरी 2024 को पंजाब एंड सिंध बैंक, गीता कॉलोनी शाखा, नई दिल्ली ने JSBCL को सूचना दी कि Vision Hospitality Service & Consultants Pvt. Ltd. की बैंक गारंटी फर्जी है। 2 मार्च 2024 को कोलकाता की एक बैंक शाखा ने भी Marsan Innovative Security Pvt. Ltd. की गारंटी को फर्जी करार दिया।

JSBCL के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बैंक द्वारा स्पष्ट सूचना देने के बावजूद JSBCL के अधिकारियों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इन कंपनियों ने नियमों की अनदेखी कर शराब दुकानों का संचालन जारी रखा और करोड़ों रुपये की वसूली की।
इस घोटाले के सामने आने के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर अधिकारियों ने क्यों कोई ठोस कदम नहीं उठाया? क्या इसमें अंदरूनी मिलीभगत थी? यह मामला केवल कंपनियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई उच्च पदस्थ अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
बाबूलाल मरांडी ने की FIR और ब्लैकलिस्टिंग की मांग
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इस घोटाले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने मांग की है कि दोषी कंपनियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाए और इन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाए। साथ ही, JSBCL के उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो, जिन्होंने इस मामले में लापरवाही बरती।
मरांडी ने सरकार से यह भी अपील की है कि भविष्य में ऐसी वित्तीय अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी प्रणाली लागू की जाए, ताकि सरकारी खजाने को नुकसान न हो।

सरकार की साख पर सवाल
झारखंड सरकार पिछले तीन वर्षों से शराब की बिक्री कर रही है, लेकिन इन वर्षों में उत्पाद विभाग में 6 मंत्री, 9 कमिश्नर और 5 सचिव बदले गए। इतनी बार अधिकारियों का बदलना खुद प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
यह मामला झारखंड सरकार की पारदर्शिता और वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और क्या दोषियों को सजा मिलती है या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।