दुमका में आरजेडी की गुटबाजी सतह पर, हूल दिवस पर दिखा संगठन में बंटवारा

दुमका में आरजेडी की गुटबाजी सतह पर, हूल दिवस पर दिखा संगठन में बंटवारा

Dumka News: दुमका जिले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अंदरूनी कलह अब खुलकर सामने आने लगी है। बीते कुछ दिनों से संगठन में दो गुटों की मौजूदगी की चर्चा थी, लेकिन सोमवार को यह स्पष्ट संकेत में तब्दील हो गया। हूल दिवस के अवसर पर पोखरा चौक पर सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचे राजद कार्यकर्ता दो अलग-अलग समूहों में बंटे नजर आए।

यह दृश्य इस बात का प्रमाण बन गया कि संगठन में ‘ऑल इज वेल’ नहीं है। जहां एक ओर राजद युवा जिलाध्यक्ष मो. अली अपने समर्थकों के साथ पहुंचे, वहीं दूसरी ओर कुछ ही देर बाद जिलाध्यक्ष डॉ. अमरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ माल्यार्पण करते नजर आए।

एक ही मंच, दो गुट – सियासी संदेश साफ

हूल दिवस के मौके पर हुए इस कार्यक्रम में युवा राजद के जिलाध्यक्ष मो. अली के नेतृत्व वाले गुट ने पहले माल्यार्पण किया। प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट लिखा गया कि यह कार्यक्रम कंचन यादव के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। माल्यार्पण के दौरान कार्यकर्ताओं में एकजुटता का प्रयास किया गया, लेकिन कुछ ही मिनटों में तस्वीर बदल गई।

दूसरे गुट की अगुवाई कर रहे राजद जिलाध्यक्ष डॉ. अमरेंद्र यादव ने अपने समर्थकों के साथ उसी स्थल पर आकर माल्यार्पण किया। हालांकि उन्होंने गुटबाजी के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कंचन यादव अब पार्टी के प्राथमिक सदस्य भी नहीं हैं।

गुटबाजी के आरोप और इनकार दोनों जारी

एक तरफ जहां जिलाध्यक्ष इसे महज संयोग बता रहे हैं, वहीं युवा जिलाध्यक्ष मो. अली ने खुलकर संगठन के भीतर संवादहीनता की ओर इशारा किया। उनका कहना है कि पार्टी के किसी भी कार्यक्रम की सूचना जिलाध्यक्ष द्वारा साझा नहीं की जाती, यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र रूप से माल्यार्पण का आयोजन किया।

इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि राजद दुमका में संगठनात्मक समन्वय की कमी है। कार्यक्रमों में तालमेल का अभाव और गुटों की अलग-अलग गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि पार्टी में आपसी विश्वास की कमी है।

चुनावी दृष्टिकोण से खतरनाक संकेत

झारखंड में अगले विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और ऐसे समय में राजद जैसे दल के लिए अंदरूनी कलह बेहद नुकसानदेह हो सकती है। पार्टी कार्यकर्ताओं का बंटवारा और नेतृत्व में मतभेद आने वाले दिनों में राजनीतिक जमीन को कमजोर कर सकता है।

अगर इस गुटबाजी पर लगाम नहीं लगाई गई, तो न केवल संगठन की साख को धक्का लगेगा, बल्कि क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं।

Subhash Shekhar

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