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दिवाली में लक्ष्‍मी पूजा से एक दिन पहले क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा

दिवाली में लक्ष्‍मी पूजा से एक दिन पहले क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, रूप चौदस, या काली चौदस भी कहा जाता है. यह दिवाली से एक दिन पहले, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है.

क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा

हिंदू धर्म में, यमराज को मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है. वे धर्मराज के रूप में भी जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “न्याय के राजा”. यमराज को न्याय, कर्म और मृत्यु के चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता के रूप में माना जाता है.

यमराज की पूजा मुख्य रूप से दो अवसरों पर की जाती है:

  • धनतेरस: धनतेरस, दिवाली से पहले का त्योहार है. इस दिन, लोग नए सामान खरीदने, पूजा करने और यमराज की पूजा करने की परंपरा रखते हैं. यमराज की पूजा करने के पीछे मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु से बचाव होता है और परिवार के सदस्यों की आयु बढ़ती है.
  • नरक चतुर्दशी: नरक चतुर्दशी, दिवाली से एक दिन पहले का त्योहार है. इस दिन, लोग यमराज की पूजा करते हैं और यमदीपक नामक दीपक जलाते हैं. यमदीपक को यमराज को समर्पित माना जाता है. इस दिन यमराज की पूजा करने के पीछे मान्यता है कि इससे नरक से मुक्ति मिलती है.

यमराज की पूजा के दौरान, उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, जिनमें चावल, दूध, फल, फूल और मिठाई शामिल हैं. उन्हें धूप, दीप और गंध भी दी जाती है. यमराज की पूजा करने के लिए मंत्रों का जाप भी किया जाता है.

यमराज की पूजा का उद्देश्य उन्हें प्रसन्न करना और उनके आशीर्वाद प्राप्त करना है. ऐसा माना जाता है कि यमराज की पूजा करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद अच्छे स्थान की प्राप्ति होती है.

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नरक चतुर्दशी का महत्‍व

नरक चतुर्दशी का सबसे प्रसिद्ध महत्व यह है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था. नरकासुर एक अत्याचारी राक्षस था जिसने देवताओं, ऋषियों, और 16,100 कन्याओं को कैद कर रखा था. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से नरकासुर का वध किया और 16,100 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया.

नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचाव होता है. इस दिन व्रत रखने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है.

मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा

नरक चतुर्दशी के दिन, लोग यमराज की पूजा करते हैं, जो मृत्यु के देवता हैं. यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन लोग घरों को साफ करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, और मिठाइयां बांटते हैं.

नरक चतुर्दशी के दिन कुछ विशेष परंपराएं भी निभाई जाती हैं. इनमें से एक है यम दीपक जलाना. यम दीपक एक दीपक होता है जिसे दक्षिण दिशा में जलाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि यम दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को नरक से मुक्ति मिलती है.

नरक चतुर्दशी के अन्य परंपराएं

  • उबटन लगाकर स्नान करना
  • मेहंदी लगाना
  • मां काली की पूजा करना
  • हनुमान जी की पूजा करना

नरक चतुर्दशी एक शुभ त्योहार है जो लोगों को नई शुरुआत और नई उम्मीदों का संदेश देता है.

नरक चतुर्दशी पूजा की विधि

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था. इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचाव होता है.

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नरक चतुर्दशी पूजा की विधि इस प्रकार है:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
  • पूजा स्थल को साफ करें और भगवान कृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें.
  • भगवान कृष्ण को फूल, माला, फल, मिठाई, धूप, दीप, आदि अर्पित करें.
  • भगवान कृष्ण की आरती करें.
  • भगवान कृष्ण से अपने सभी पापों से मुक्ति और भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचाव की प्रार्थना करें.

नरक चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त

नरक चतुर्दशी 2023 के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:

  • प्रदोष काल: 11 नवंबर 2023 को शाम 5:29 से 7:23 तक
  • यमदीपदान का मुहूर्त: 11 नवंबर 2023 को शाम 5:29 से 7:23 तक

इस दिन शाम को यमदीपदान का विशेष महत्व है. इस दिन घर के बाहर या मंदिर में यमदेवता को दीपक जलाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से बचाव होता है.

नरक चर्तुदर्शी से जुड़ी कहानियां और मान्‍यताएं

नरक चतुर्दशी की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियां हैं. एक कहानी के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने नरकासुर नामक एक राक्षस का वध किया था. नरकासुर ने पृथ्वी पर आतंक मचाया था और लोगों को बहुत कष्ट दिए थे. भगवान विष्णु ने उसके वध से लोगों को मुक्ति दिलाई. इसलिए, इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.

एक अन्य कहानी के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने अपने भक्तों को नरक से मुक्त किया था. भगवान शिव ने अपने भक्तों की प्रार्थना सुनी और उन्हें नरक से मुक्त कर दिया. इसलिए, इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.

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नरक चतुर्दशी का सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है. इस दिन, हिंदू अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें भोजन और उपहार अर्पित करते हैं. वे अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं और उन्हें सजाते हैं. वे नए कपड़े पहनते हैं और मिठाई और अन्य व्यंजनों का आनंद लेते हैं.

नरक चतुर्दशी के दिन, हिंदू मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं. वे भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं. वे अपने पूर्वजों के लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें नरक से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना करते हैं.

नरक चतुर्दशी एक ऐसा त्योहार है जो हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद के जीवन की मान्यता को दर्शाता है. यह एक ऐसा दिन है जब हिंदू अपने पूर्वजों की आत्माओं को याद करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं.

पिछले 10 सालों से रांची में डिजिटल मीडिया से जुड़ाव रहा है. Website Designing, Content Writing, SEO और Social Media Marketing के बदलते नए तकनीकों में दिलचस्‍पी है.

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