Ranchi: झारखंड की राजनीति एक बार फिर उफान पर है। 22 मई 2025 को रांची स्थित अल्बर्ट एक चौक पर आदिवासी संगठनों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन करने की घोषणा की है। इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन टीएसी (ट्राइबल एडवाइजरी कमिटी) की हालिया बैठक में लिए गए शराब बिक्री से जुड़े फैसले के विरोध में किया जा रहा है।
आदिवासी बचाओ मोर्चा समेत अन्य कई संगठनों का कहना है कि सरकार लगातार आदिवासी विरोधी फैसले ले रही है। खासकर ग्राम स्तर पर शराब दुकानों को मंजूरी देने का निर्णय आदिवासी समाज के मूल्यों और संस्कृति पर सीधा प्रहार है।
टीएसी की बैठक में लिए गए अहम फैसले, लेकिन विरोध गहराया
21 मई को हुई टीएसी की बैठक की अध्यक्षता स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की। तीन घंटे चली इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। बैठक में यह तय किया गया कि जिन ग्राम पंचायतों में 50% से अधिक आदिवासी जनसंख्या है, वहां शराब की खुदरा दुकानें खोली जा सकती हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में होटल, रेस्टोरेंट और बार खोलने की अनुमति भी दी गई।
इस फैसले पर आदिवासी संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि ट्राइबल एडवाइजरी कमिटी आदिवासियों के अधिकारों और विकास के लिए बनाई गई थी, न कि उनके सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने के लिए।
आंदोलनकारी संगठनों का तर्क है कि जल, जंगल और जमीन पर उनका अधिकार सुरक्षित रखना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन हेमंत सरकार उन्हीं संसाधनों का दोहन कर रही है।
बैठक में कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा, पर विवाद बना शराब पर
टीएसी की बैठक में वन अधिकार योजना के तहत “अबुआ बीर दिशोम” अभियान की समीक्षा की गई। हर दो माह में वनपट्टा वितरण सुनिश्चित करने का निर्णय लिया गया। वहीं सीएनटी एक्ट की धारा 46 को लेकर राजस्व थाना की परिभाषा को स्पष्ट करने पर भी सहमति बनी।
इसके अलावा ईचा डैम परियोजना को पुनः शुरू करने, राजस्व थाना क्षेत्र की पुनर्संरचना और आदिवासी धार्मिक स्थल लगुबुरु पर डीवीसी द्वारा कार्य रोके जाने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
फिर भी बैठक का सबसे विवादित विषय रहा – शराब की दुकानों की ग्राम स्तर पर मंजूरी। विपक्ष ने भी इस फैसले पर हमला बोलते हुए इसे आदिवासी समाज के लिए घातक बताया।
मुख्यमंत्री का बचाव, विरोधियों पर साधा निशाना
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बैठक के बाद कहा कि सरकार टीएसी के सुझावों पर ही काम कर रही है और इससे आदिवासियों को लाभ होगा। उन्होंने भाजपा के नेताओं बाबूलाल मरांडी और चंपाई सोरेन पर तंज कसते हुए कहा कि विपक्ष में रहते हुए ये हमेशा विरोध करते हैं, चाहे निर्णय कैसा भी हो।
आदिवासी समाज के भीतर सरकार की नीतियों को लेकर गहरी असंतोष की भावना उभर रही है। शराब बिक्री को बढ़ावा देने का निर्णय भले ही आर्थिक दृष्टिकोण से लिया गया हो, लेकिन इसका सामाजिक असर सरकार के खिलाफ जनाक्रोश का कारण बनता जा रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस जनविरोध को कैसे संभालती है, और क्या आदिवासी हितों की रक्षा के वादे वास्तव में पूरे होंगे।