झारखंड में मनाए जाने वाले त्योहारों की सूची लंबी और विविधतापूर्ण है, लेकिन टुसू परब (Tusu Parab) अपनी विशिष्ट परंपराओं और सांस्कृतिक महत्व के लिए एक अलग स्थान रखता है। यह पर्व झारखंड के ग्रामीण जीवन, प्रकृति के साथ उसके संबंध और सामूहिकता के अद्भुत उदाहरण को दर्शाता है। टुसू परब न केवल झारखंड बल्कि पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम के कुछ हिस्सों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
Tusu Parab का ऐतिहासिक महत्व
टुसू परब की शुरुआत लगभग 600 साल पहले हुई थी। यह पर्व एक सुंदर युवती ‘टुसू’ के बलिदान की याद में मनाया जाता है। लोककथाओं के अनुसार, टुसू एक किसान परिवार की अविवाहित बेटी थी, जिसकी सुंदरता की ख्याति मुगल दरबार तक पहुंची।
टुसू की बलिदानी गाथा
अकाल के समय, जब मुगल शासकों ने किसानों पर अत्यधिक कर लगाया, टुसू ने ग्रामीणों का नेतृत्व किया। संघर्ष में हार के बावजूद, टुसू ने आत्मसमर्पण करने के बजाय सुवर्णरेखा नदी में जल समाधि ले ली। इस घटना ने ग्रामीणों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी और टुसू परब के रूप में उनकी स्मृति को संजोया गया।
पर्व के रीति-रिवाज और परंपराएं
पूजा का अनूठा तरीका
टुसू की पूजा पारंपरिक मंत्रोच्चार के बजाय लोकगीतों के माध्यम से की जाती है। महिलाएं और युवतियां नदी में स्नान कर फूलों से सजे बांस के टोकरों में प्रसाद चढ़ाती हैं।
‘चौड़ल’ का निर्माण
पर्व का मुख्य आकर्षण ‘चौड़ल’ (टुसू की पालकी) है। इसे बांस, लकड़ी और कागज से तैयार किया जाता है। चौड़ को सजाने में अद्भुत कला और परंपरा का समावेश होता है।

मकर संक्रांति का जुड़ाव
टुसू परब मकर संक्रांति के साथ जुड़ा है। मकर संक्रांति की सुबह, सभी ग्रामीण नदी में पवित्र स्नान करते हैं और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
पारंपरिक पकवान
त्योहार के दौरान बनाए जाने वाले पकवानों में गुड़ पीठा, आरसा पीठा, और तिल के लड्डू शामिल हैं। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका भी हैं।
टुसू विसर्जन और मेले की धूम
पर्व का अंतिम दिन बेहद खास होता है।
टुसू का विसर्जन
‘सती घाट’ पर टुसू विसर्जन का आयोजन होता है। इससे पहले, जागरण की रात में टुसू को पालकी में बिठाकर पूरे गांव में भ्रमण कराया जाता है।
मेले का आकर्षण
इस दौरान आयोजित मेले में पारंपरिक खेल जैसे मुर्गा लड़ाई और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां आकर्षण का केंद्र होती हैं। ग्रामीणों के सामूहिक जीवन और उनके उत्साह का यह अद्भुत उदाहरण है।

टुसू परब का सांस्कृतिक महत्व
ग्रामीण जीवन का प्रतीक
टुसू पर्व ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, संघर्ष और सामुदायिक भावना को दर्शाता है।
लोककला और संगीत
पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत झारखंड की समृद्ध लोक संस्कृति को उजागर करते हैं।
एकता और प्रकृति के प्रति आभार
यह पर्व सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है, जो इसे और भी खास बनाता है।