झारखंड विधानसभा के प्रशिक्षण कार्यक्रम में राज्यसभा के उपसभापति माननीय श्री हरिवंश जी ने विधायकों को संबोधित किया। इस अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो, वरिष्ठ नेता राधा कृष्ण किशोर, वित्त मंत्री, संसदीय कार्यमंत्री सहित कई अन्य गणमान्य उपस्थित थे।
विधानसभा के नए विधायकों के लिए प्रशिक्षण का महत्व
हरिवंश जी ने झारखंड विधानसभा में चुने गए नए विधायकों को बधाई दी और इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह देश की सबसे युवा विधानसभा है, और एक युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रदेश नई ऊंचाइयों को छू सकता है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस विचार का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने युवाओं की राजनीति में भागीदारी को बढ़ाने पर जोर दिया था। इस बार विधानसभा में 12 महिला विधायकों का चुना जाना भी लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है।
प्रशिक्षण से विधायकों की कार्यक्षमता में वृद्धि
हरिवंश जी ने चीन का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां सरकार अपने नेताओं को भविष्य के लिए तैयार करने हेतु विशेष प्रशिक्षण देती है। उन्होंने कहा कि चीन 1980-90 के दशक तक भारत के बराबर था, लेकिन आज वह पांच गुना बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इसका एक बड़ा कारण वहां का प्रशिक्षण तंत्र है, जो नेताओं और अधिकारियों को समय के साथ अपडेट करता रहता है।
उन्होंने बताया कि झारखंड में भी विधायकों को प्रशिक्षित करने का यह प्रयास बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि संसदीय प्रक्रिया को समझकर ही वे अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से निभा सकते हैं।
विधानसभा में नियमों और प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक
हरिवंश जी ने विधानसभा संचालन से जुड़े नियमों की जानकारी देते हुए कहा कि विधानसभाओं के नियम किसी एक दल द्वारा नहीं बनाए जाते, बल्कि सभी दलों की सहमति से तय होते हैं। स्पीकर का मुख्य दायित्व इन नियमों का पालन सुनिश्चित कराना होता है।
उन्होंने चिंता जताई कि वर्तमान समय में विधायिका में अव्यवस्था बढ़ रही है, जिससे सदन की कार्यवाही बाधित होती है। पहले ऐसा कम होता था, लेकिन अब यह आम बात बन गई है। विधायकों को चाहिए कि वे सदन में अपनी भूमिका को गंभीरता से लें और नियमों के अनुरूप काम करें।
लोकतंत्र में विधायकों की जिम्मेदारी
हरिवंश जी ने कहा कि लोकतंत्र में विधायक ही वे लोग होते हैं जो नीतियों और कानूनों को आकार देते हैं। 1991 में भारत में हुए आर्थिक सुधारों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जब तक संसद में इसकी सहमति नहीं बनी, तब तक बड़े बदलाव संभव नहीं हो सके। इसी तरह, झारखंड में भी किसी भी बड़े सुधार के लिए विधानसभा की भूमिका अहम है।
उन्होंने विधायकों को सलाह दी कि वे सदन की कार्यवाही को ध्यान से सुनें, नियमों और प्रक्रियाओं को अच्छी तरह समझें और प्रभावी ढंग से अपनी बात रखें। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने भी सबसे पहले संसद में बैठकर दूसरों को सुनने और सीखने पर जोर दिया था।
निष्कर्ष
हरिवंश जी के संबोधन का मुख्य संदेश यही था कि झारखंड के विधायकों को अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए पूरी निष्ठा और दक्षता के साथ कार्य करना चाहिए। विधानसभा एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां लिए गए निर्णय राज्य की दिशा और दशा तय करते हैं। ऐसे में विधायकों के लिए जरूरी है कि वे प्रशिक्षण से सीखकर अपनी भूमिका को प्रभावी बनाएँ और जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरें।