Ranchi। रिम्स की अधिग्रहित जमीन पर वर्षों से चले आ रहे अतिक्रमण मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने जिम्मेदार अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने, एसीबी से जांच कराने और अतिक्रमण से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने का स्पष्ट आदेश दिया है।
हाईकोर्ट ने यह माना कि रिम्स के लिए करीब 60 साल पहले अधिग्रहित की गई जमीन पर अवैध कब्जा हुआ। इसके बावजूद वर्षों तक प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अदालत ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही करार दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि केवल अतिक्रमण हटाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि जिन अधिकारियों की वजह से यह स्थिति बनी, उनकी जवाबदेही तय करना अनिवार्य है। इसीलिए पुलिस केस और एसीबी जांच का आदेश दिया गया।
अतिक्रमण कैसे हुआ, यह बना सबसे बड़ा सवाल
अदालत के सामने यह तथ्य सामने आया कि रिम्स प्रबंधन, जिला प्रशासन, नगर निगम, अंचल कार्यालय और संबंधित रजिस्ट्रेशन व बैंकिंग प्रक्रियाओं में कई स्तरों पर लापरवाही हुई।
कई मामलों में सरकारी जमीन पर निजी अपार्टमेंट और भवन खड़े हो गए, जबकि संबंधित विभागों ने समय रहते न तो आपत्ति दर्ज की और न ही रोक लगाने की कार्रवाई की।
किन-किन अधिकारियों और संस्थाओं की भूमिका संदिग्ध
कोर्ट ने संकेत दिया कि तत्कालीन रिम्स प्रबंधन, रजिस्ट्रेशन कार्यालय, डीसीएलआर, नगर निगम और टाउन प्लानिंग से जुड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच जरूरी है।
इसके साथ ही, उन बैंकों की भी भूमिका पर सवाल उठे हैं जिन्होंने सरकारी जमीन पर बने भवनों के लिए लोन स्वीकृत किए।
एसीबी जांच से क्या उम्मीदें
अदालत ने एसीबी को निर्देश दिया है कि पूरे मामले की समग्र जांच की जाए। इसमें यह देखा जाएगा कि सरकारी जमीन की स्थिति जानते हुए भी किस स्तर पर लापरवाही या मिलीभगत हुई।
जांच में यह भी तय होगा कि किन अफसरों की कार्रवाई या निष्क्रियता से अतिक्रमण को बढ़ावा मिला।
पीड़ितों को मुआवजा देने पर जोर
हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया कि जिन लोगों के घर या संपत्तियां बाद में अवैध घोषित हुईं, उन्हें पूरी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कई मामलों में सरकारी तंत्र की गलती से आम लोग प्रभावित हुए।
इसी वजह से अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए, ताकि उन्हें अनावश्यक नुकसान न उठाना पड़े।
प्रशासन और सरकार के लिए सख्त संदेश
यह फैसला राज्य के प्रशासनिक तंत्र के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है कि सरकारी जमीन से जुड़े मामलों में लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
अदालत ने कहा कि यदि भविष्य में दोबारा अतिक्रमण हुआ, तो जिम्मेदारी तय कर तत्काल दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
इस फैसले से उन हजारों लोगों को राहत की उम्मीद मिली है, जो वर्षों से कानूनी अनिश्चितता में जी रहे थे। साथ ही यह फैसला सरकारी जमीनों की सुरक्षा को लेकर एक मजबूत संदेश देता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भविष्य में बिना वैध जांच के सरकारी जमीन पर निर्माण की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
अब एसीबी जांच रिपोर्ट के आधार पर संबंधित अधिकारियों पर FIR दर्ज होगी। राज्य सरकार को मुआवजा नीति पर निर्णय लेना होगा और रिम्स भूमि की स्पष्ट पहचान कर वहां सरकारी सूचना बोर्ड लगाने होंगे।
मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट जांच की प्रगति की समीक्षा करेगा।
रिम्स जमीन अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट का यह फैसला केवल एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही का मजबूत उदाहरण है। यह निर्णय भविष्य में सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।








