Ranchi। झारखंड की गठबंधन सरकार के लिए नीतिगत मार्गदर्शन और दलों के बीच तालमेल स्थापित करने वाली राज्य समन्वय समिति का पुनर्गठन नए सिरे से किया जाएगा। दिशोम गुरु और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन के निधन के बाद समिति के अध्यक्ष का पद रिक्त है। इसके साथ ही समिति के अन्य सदस्यों का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है, जिससे नए गठन की प्रक्रिया अनिवार्य हो गई है।
राज्य समन्वय समिति का गठन गठबंधन सरकार की स्थिरता, नीतिगत निर्णयों में सामंजस्य और विभिन्न दलों के बीच समन्वय बनाए रखने के उद्देश्य से किया जाता है। यह समिति सरकार और गठबंधन दलों के बीच एक सेतु की तरह कार्य करती है।
शिबू सोरेन के नेतृत्व में गठित पिछली समिति को गठबंधन सरकार का मजबूत आधार माना जाता था। उनके मार्गदर्शन में समिति की नियमित बैठकें हुईं और कई अहम नीतिगत मुद्दों पर सहमति बनी।
समन्वय समिति में गठबंधन का नेतृत्व करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया था। इस मंच के माध्यम से सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा होती रही।
शिबू सोरेन के निधन के बाद समिति के अध्यक्ष पद के रिक्त होने से निर्णय प्रक्रिया प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही थी। वहीं, सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जाने के कारण समिति औपचारिक रूप से निष्क्रिय स्थिति में पहुंच गई थी।
गठबंधन सरकार में विभिन्न दलों की भागीदारी के चलते समन्वय समिति की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यही कारण है कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए समिति के पुनर्गठन की सहमति बन रही है।
पूर्व समिति की संरचना और भूमिका
पूर्व समिति में झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय और फागू बेसरा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजेश ठाकुर, कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व विधायक बंधु तिर्की जैसे प्रमुख नेताओं के नाम शामिल थे।
समिति का मुख्य कार्य सरकार की योजनाओं की निगरानी करना, गठबंधन दलों के बीच तालमेल बनाए रखना और नीतिगत फैसलों पर सरकार को सुझाव देना था।
प्रशासन और राजनीतिक प्रतिक्रिया
गठबंधन के घटक दलों के भीतर इस बात पर सहमति बन रही है कि नई परिस्थितियों और चुनौतियों के अनुरूप समिति का पुनर्गठन किया जाए। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि नई समिति सरकार के कामकाज को और अधिक संगठित बनाएगी।
वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि समन्वय समिति के सक्रिय होने से निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होगी और मतभेदों को समय रहते सुलझाया जा सकेगा।
राज्य समन्वय समिति के प्रमुख उद्देश्य
- गठबंधन दलों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना
- राज्य सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों पर निगरानी रखना
- नीतिगत फैसलों पर सरकार को मार्गदर्शन और सुझाव देना
- प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दों पर समन्वयक की भूमिका निभाना
- गठबंधन सरकार की स्थिरता बनाए रखना
सदस्यों को मिलने वाली सुविधाएं
राज्य समन्वय समिति के सदस्यों को विशेष सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। इनमें राज्यमंत्री का दर्जा, निर्धारित वेतन, सरकारी भत्ते और अन्य प्रशासनिक सुविधाएं शामिल हैं।
इसी कारण समिति का गठन केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, समिति के पुनर्गठन से सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी आने की संभावना है। इससे गठबंधन दलों के बीच संवाद मजबूत होगा और नीतिगत फैसलों में स्पष्टता आएगी।
जनता को उम्मीद है कि बेहतर समन्वय के चलते विकास योजनाओं का लाभ समय पर जमीन तक पहुंचेगा।
पुनर्गठन की प्रक्रिया में विभिन्न दलों से वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को समिति में शामिल किए जाने की संभावना है। साथ ही समिति की भूमिका और कार्यक्षेत्र को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार और अधिक स्पष्ट किया जाएगा।
आने वाले दिनों में नई समिति की घोषणा के साथ ही इसकी पहली बैठक होने की भी संभावना जताई जा रही है।
राज्य समन्वय समिति का पुनर्गठन झारखंड की गठबंधन सरकार के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है। शिबू सोरेन के बाद यह नई संरचना सरकार को नीतिगत दिशा देने और दलों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।








