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1932 खतियान: हेमंत सोरेन के लिए जो कल तक था व्यावहारिक, उसके लिए आज क्‍यों कर रहे हैं आंदोलन की बात

1932 खतियान: हेमंत सोरेन के लिए जो कल तक था अव्‍यावहारिक, उसके लिए आज क्‍यों कर रहे हैं आंदोलन की बात

1932 खतियान, बता जहां से शुरू हुई थी आज झारखंडी वहीं पर आ पहुंचे हैं. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में झारांड मुक्ति मोर्चा के चुनावी एजेंडी में 1932 खतियान वाली स्‍थानीय नीति प्रमुखता से थी. हेमंत सोरेन चुनावी सभाओं में जोर देकर कहते थे सत्‍ता में आते ही लागू करेंगे. सत्‍ता में आने के तीन साल बाद जब इसकी मांग तूल पकड़ी ने मुख्‍यमंत्री बने हेमंत सोरेन ने विधानसभा सत्र में इसे असंवैधानिक करार दे दिया. परिस्थितियां बदलीं 1932 खतियान वाला स्‍थानीय नीति कैबिनेट में पास कर दिया. विशेष सत्र बुलाकर पास भी करा दिया गया. अब राज्‍यपाल ने इसे असंवैधानिक बताकर इसे समीक्षा के लिए झारखंड सरकार के पास वापस भेज दिया है. ऐसे में हेमंत सोरेन फिर पहले की तरह अखतियान के लिए आंदोलन कर रहे हैं. झारखंड की राजनीति किस परिस्थिति में किस करवट बदल रही है पढि़ए विष्‍लेशन.

वह दिन झारखंड के लिए ऐतिहासिक बताया जा रहा था. जब हेमंत सरकार 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता परिभाषित करने का विधेयक सदन में लाने वाली थी. साल 2021 के जनवरी माह से ही झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा काफी चर्चित रहा. कई संगठनों, राजनेताओं और आम लोगों ने भी इसकी मांग को लेकर लगातार आंदोलन किया.

केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के बीच स्थानीयता विधेयक लाने को विश्लेषक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सबसे बड़ा राजनीतिक दांव बता रहे हैं.

मजे की बात यह है कि मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले साल मार्च महीने में कह रहे थे कि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता पारिभाषित नहीं की जा सकती.

1932 खतियान हेमंत सोरेन का बना रक्षा कवच

बड़ा सवाल यह है कि जिस खतियान आधारित स्थानीय नीति को मुख्यमंत्री ने सदन में अव्यावहारिक बताया था वो अचानक उनका सबसे बड़ा सियासी दांव कैसे बन गया? आखिर क्या बदला. कहीं केंद्रीय एजेंसियों की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने सीएम हेमंत को अपनी तरकश से ये तीर निकालने को विवश तो नहीं किया?

दरअसल, झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा यहां के आदिवासियों-मूलवासियों के लिए भावनाओं से जुड़ा रहा है. शायद यही वजह भी है कि 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले जारी अपने घोषणापत्र में झामुमो ने इसका वादा किया था.

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मार्च 2022 में हेमंत सोरेन ने 1932 को बताया था अव्यावहारिक

हालांकि, 23 मार्च 2022 को बजट सत्र के आखिरी दिन मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में साफ-साफ कहा था कि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति नहीं लाई जा सकती. उन्होंने इसे अव्यावहारिक बता दिया.

मुख्‍यमंत्री ने कहा कि ये तो हाईकोर्ट से ही खारिज हो जाएगा. मुख्यमंत्री ने तब विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा था कि विपक्ष के साथी डोमिसाइल के मुद्दे पर झारखंड में आग लगाना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि राज्य में 1932 के अलावा भी कई बार सर्वे सेटलमेंट हुआ है. कहीं 1975 में हुआ तो कहीं 1985 में. किसी-किसी जिले में तो 1995 में भी हुआ. हम किसे आधार मानें.

तब मुख्यमंत्री के इस बयान पर विपक्ष ने तो निशाना साधा ही था, सत्तारूढ़ झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी इसकी आलोचना की थी. वे घोषणापत्र का हवाला देकर अपनी ही सरकार पर हमलावर रहे.

उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर वादा-खिलाफी का आरोप लगाया. पदयात्रा की. प्रण भी लिया कि जब तक 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति लागू नहीं होगी वे घर नहीं लौटेंगे.

उनके साथ इस आंदोलन में पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव भी नजर आईं.

क्या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से बदले हालात

अब सवाल यह है कि मुख्यमंत्री ने जिस 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को अव्यावहारिक बताया था आज उसी पर राजी कैसे हो गए. कैसे उन्होंने इसे अपना सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार बना लिया. इसके लिए आपको चलना होगा साल 2021 के अप्रैल महीने में.

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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक प्रेस कांफ्रेंस किया. आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री और खान मंत्री रहते अपने नाम से अनगड़ा में खनन पट्टा का लीज लिया. कहा कि ये ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है.

बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से इसकी शिकायत की और मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया. चुनाव आयोग में सुनवाई चली. 25 अगस्त को खबर आई कि चुनाव आयोग ने राजभवन को इस मामले में अपना मंतव्य भेज दिया है और सीएम की विधायकी रद्द करने के अनुशंसा की है.

14 सितंबर को कैबिनेट की बैठक हुई और अचानक से झारखंडी जनमानस सीएम हेमंत के पीछे लामबंद हो गया. दरअसल, इस बैठक में सरकार ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को पारिभाषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. पूरा झारखंड झूमने लगा.

हालांकि, विरोध के स्वर भी उठे. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि यदि 1932 को स्थानीयता का आधार बनाया गया तो कोल्हान की पूरी आबादी इससे बाहर हो जाएगी क्योंकि वहां आखिरी सर्वे सेटलमेंट 1932 के बाद हुआ. उनकी पत्नी और कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने भी इसका विरोध किया.

1932 पर बीजेपी की राजनीति‍

कांग्रेस के ही कई अन्य नेताओं ने खुलकर विरोध नहीं किया पर चुप्पी साध ली. यहां बीजेपी भी बैकफुट पर आ गई. बीजेपी के लिए असमंजस ये है कि यदि वो समर्थन करती है तो एक बड़ी आबादी जो बाहर से आई है और बीते कई वर्षों से झारखंड में रह रही है, वो वर्ग नाराज हो जाएगा.

यदि बीजेपी विरोध करती है तो आदिवासियों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी. हालांकि, बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास सरीखे शीर्ष नेताओं ने कानूनी नजरिए से इसका विश्लेषण किया. फिर भी कई लोगों को लगता था कि ये प्रस्ताव तक ही सीमित रह जाएगा. हेमंत सरकार इसे विधेयक के रूप में नहीं ला पाएगी.

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1932 सीएम हेमंत को दिला पाएगा बीजेपी पर सियासी बढ़त?

1 नवंबर 2022 को ईडी ने मनी लाउंड्रिंग और अवैध खनन मामले में पूछताछ के लिए मुख्यमंत्री को समन किया. 3 नवंबर को पूछताछ के लिए बुलाया. इससे पहले 2 नवंबर की शाम तक मुख्यमंत्री सचिवालय की तरफ से एक पत्र आया. बताया गया कि 11 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है. सरकार इसमें 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता कानून लाने वाला विधेयक पेश करेगी.

बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने इसे सीएम द्वारा सहानुभूति हासिल करने का हथकंडा बताया लेकिन जनता खुश है. कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कानूनी चक्रव्यूह से निकलने के लिए सियासी बाण चलाया है. ये कितना कारगर होता है ये तो वक्त बताएगा.

पिछले 10 सालों से रांची में डिजिटल मीडिया से जुड़ाव रहा है. Website Designing, Content Writing, SEO और Social Media Marketing के बदलते नए तकनीकों में दिलचस्‍पी है.

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