राँची। आज आधुकिता के इस दौर में बहुत की परपंराएं अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं, पर आज भी कुछ रीतिरिवाज ऐसे हैं, जो अपने आप को बचाकर रखने में सफल रही हैं। उन्ही परंपराओं में एक है फगुआ या फ़ाग काटना । होली के पूर्व फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लकड़ियों को एक जगह इकट्ठा कर उसे जला दिया जाता है, लेकिन आज भी झारखंड के गांव में लोगों के द्वारा फाग या फगुआ काटने की परंपरा है।फाल्गुन पूर्णिमा की रात(होलिका दहन की रात )को शुभ मुहूर्त में गांव के लोगों के दौरा पूजा अर्चना के बाद पुआल लपेटकर उसे जलाया जाता है और जलती हुई डालियों को गांव के लोग धारदार हथियारों से काटते हैं। फाग जलने से उठने वाले धुएं की दिशा देखकर पाहन भविष्यवाणि करता है कि उस वर्ष वर्षा कैसी होगी और खेती-किसानी की स्थिति क्या होगी। फाग काटने के पूर्व रात को गांव के पुरुष और बच्चे सामूहिक रूप से नाचते-गाते फाग काटने वाले स्थान जिसे फगुवा टांड़ कहा जाता है।
रात सुकुरहुटू में हुआ फगुआ काटने की परंपरा

राँची से सटे सुकुरहुटू गांव में रात 2:42 बजे फगुआ काटा गया इससे पूर्व गांव के पुरुष और बच्चे सामूहिक रूप से नाचते-गाते फगुवा टांड़ पहुँचे गांव के जमींदार परिवार के लोगों ने विधि विधान से पहले अनुष्ठान किया उसके बाद पुवाल में आग लगाकर धारदार फरसा से फगुआ काटा ।फगुआ काटने के बाद उन लोगों ने अच्छी फसल और गांव की सुख समृद्धि की कामना की।