भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (झारखंड संशोधन) विधेयक 2017 से पुराने 2013 कानून से हटा दिये गये मूल तथ्य
#Ranchi: झारखंड में जमीन अधिग्रहण से जुड़ा कानून में संशोधन के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद राजनीतिक लड़ाई तेज हो गई है. कानून के जानकार रश्मि कात्यायन के अनुसार जमीन से जुड़े इस कानून के बीच सरकार और विपक्ष आपस में जरूर लड़ रहे हैं लेकिन कानून की असलियत और उससे होने वाले नुकसान की जानकारी लोगों को कोई नहीं बता रहा है. मीडिया में जिस तरह की जानकारी फैलाई जा रही है उससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है.
रश्मि कात्यायान ने बताया कि यह कोई नया कानून नहीं है. यह 2013 को बनया गया कानून है, जसमें सरकार ने संशोधन किया है. नये संशोधन को जानने से पहले पुराने मूल कानून और उसके स्वरूप और उद्देश्यों को जानने-समझने की जरूरत है. आमतौर पर इसे लोग भूमि अधिग्रहण कानून 2013 कहते हैं. लेकिन मूल कानून में कहीं ऐसा नहीं है, सरकारी दस्तावेज में जमीन अधिग्रहण की बाते कम है. ज्यादा बातें सामाजिक समाघात का निर्धारण (सोशल इम्पैक्ट एसेसमेंट करने का है.
किसी भी प्रोजेक्ट के लिए जमीन लेने से पहले सामाजिक समाघात यानी उसके कारण अगल-बगल में क्या खराब या बुरा प्रभाव को समझना है, तब निर्णय लेना है कि करना क्या है. पुराने कानून में इन्ही सब बातों की जानकारी है. कानून में जमीन लेने के दौरान उनके पुनर्व्यस्थापन की जानकारी है. जैसे अनुसूचित क्षेत्र में होता है तो वहां के स्पेशल कानून के आधार पर जो पहले से जो गांव बसा हुआ है, जैसे, मुंडा, खूंटकट्टी, भूंईहरी, जो स्पेशल कानून और पांचवी अनुसूची के पावर हैं उसके अनुसार अलग व्यवस्था करना है. 2013 के कानून में पुनर्व्यवस्थापन की भी बात होनी चाहिये.
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सिर्फ सिर्फ घर, बाथरूम टॉयलेट पुनर्व्यवस्थापन नहीं
नये अधिग्रहण में पुराने कानून के पुर्नवस्थापन के साथ सरकार को व्यवस्था करना चाहिये. सिर्फ घर, बाथरूम टॉयलेट ये सब देकर यह नहीं होने वाला है. यह सब सरकार को समझना होगा. कानून के नाम मे ही भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (झारखंड संशोधन) विधेयक 2017 है. लोगों को पता होना चाहिये कि जमीन क्यों लिया जा रहा है. किसके लिये लिया जा रहा है. उससे किसको फायदा होगा.
पुराने कानून का चैप्टर 2 और 3 हटा दिया
पुराने कानून में यह कि 70 प्रतिशत रैयतों की मंजूरी जिक्र है. पुनव्यवस्थापन की व्यवस्था को संशोधन कर दे रही है सरकार. संशोधन में सामाजिक समाघाट के चैप्टर को ही हटा दिया जा रहा है. कहा गया चैप्टर 2 का जरूरत नहीं है.
अब सरकार से नहीं बचा पायेंगे खेती योग्य जमीन
चैप्टर 3 में फूड सिक्यूरिटी की बात है, जिसमें खेती बारी के लिए कृषि योग्य जमीन की बात कही गई है. बहुत दिनों से अच्छी खेती हो रही है. वही फूड सिक्यूरिटी है. झारखंड में यही जीने का अधिकार है. इसे भी हटाया दिया गया है.
नये संशोधन में कृषि योग्य भूमि सुरक्षा के लिए बने कानून को इस नये संशोधन में हटा दिया गया है. नये कानून से अब भूखे मरने की नौबत आ सकती है. कानून में जो नया संशोधन हुआ है उसमें परामर्श और स्वीकृति शब्दों का इस्तेमाल हुआ है. इसका क्या मतलब है.
परामर्श की बात झूठी
पुराने कानून में यह परामर्श की बात नहीं कही गई है. 70 प्रतिशत रैयतों की अनुमति लेने की बात कही गई है. किसी प्रोजेक्ट के लिए तभी जमीन मिलेगा जब वहां के 70 प्रशित या उससे ज्यादा रैयत जमीन देने के लिए सहमत हों. लेकिन अब चैप्टर 2 ही बंद कर दिया गया है ऐसे में अब परामर्श की भी बात नहीं रह जाती है. पहले के मूल कानून में ये सब बात थी. जब उसी को हटा दिया गया तो सरकार परामर्श की बात कैसे कर सकती है.
नया संशोधन नहीं है गुजरात मॉडल जैसी कोई बात नहीं
लोग कह रहे हैं कि यह संशोधन गुजरात के माडल पर किया गया है. ऐसा कोई बात नहीं है. गुजरात के कानून में जो संशोधन किया गया है उसका यहां पर पुरा इस्तेमाल भी नहीं किया गया है. सरकार सिर्फ नाम का गुजरात का संशोधन बोल रही है. सिर्फ कुछ एक शब्द मेल खाती हैं, सही में ऐसा है नहीं. सरकार ने कैसा संशोधन किया है यह बात वह ही जाने. क्योंकि कानून का जैसा मूल नाम है उसका मकसद इससे पुरा नहीं होता है. इनका कहना है कि आधारभूत संरचना डेवलब करने में बहुत परेशानी हो रही है बहुत समय लग रहा है.
पूर्व के हेमंत सरकार से प्रभावी होगा संशोधित कानून
बहुत चालाकी से इस संशोधन को 1 जनवरी 2014 से हस्ताक्षर होने के बाद लागू माना चायेगा. यहां लोग यह कह रहे हैं कि नोटिफाई होगा. 2017 के संशोधन यह स्पष्ट है कि जब ये राष्ट्रपति के पास से लोटेगा तो 1 जनवरी 2014 से लागू हो जायेगा. रघुवर सरकार अपने निवेशकों को संरक्षित करने के साथ साथ पहले की सरकार के निवेशकों को भी लाभ पहुंचाने में लगी है. क्योकि इस अधिनियम में जो पुराना प्रोजेक्ट जो लटक गया है उसको भी फायदा मिलेगा. सरकार से यह पूछना चाहिये कि कितने प्रोजेक्ट में जमीन नहीं मिलने से हैरानी हुई, परेशानी हुई.
नया चैप्टर 3 ‘ए’ लाने की नहीं थी जरूरत
इस संशोधन में चैप्टर 2 और चैप्टर 3 को हटाने के बाद चैप्टर 3 ‘ए’ ला रहे हैं. चैप्टर 3 कृषि योग्य जमीन को बचाने के लिए है, इस कानून को हटाकर 3 ‘ए’ लाया जा रहा है. जो लोग इस कानून की ड्राफ्टिंग किया है उससे लगता है कि वे कितना लापरवाही बरती गई है. चैप्टर 3 ‘ए’ में कहा गया है कि सरकारी स्कूल, कॉलेज, पंचायत, आंगनबाड़ी सेंटर, का जिक्र किया गया है. अभी तक के इतिहास में कभी इन सब के लिए जमीन को लेकर पेरशानी नहीं हुई. रांची यूनीवर्सिटी इसका ताजा उदाहरण है. सरकार को बताना चाहिये कि 2014 के बाद इन सब के लिए जमीन लेने में कहां परेशानी हुई. पुराने स्कूल को ही सरकार संभाल नहीं पा रही है. सरकारी स्कूल विलय किये जा रहे हैं. कस्तूरबा और एकलव्य जैसे स्कूल के लिए कभी परेशानी नहीं. रेल, एयरपोर्ट, हाईवे के लिए इस कानून की जरूरत नहीं है उसके लिए अलग कानून बना हुआ है, लेकिन संशोधन में इनकी भी बात कही गई है.