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Ranchi: किसी भी नगर निगम या निकाय का प्रथम नागरिक होता है मेयर या अध्यक्ष. अब इस पद पर निर्वाचित व्यक्ति को झारखंड सरकार हटा सकती है. हेमंत सोरेन की कैबिनेट ने कानून में संसोधन कर इस पर बड़ा फैसला लिया है.
कैबिनेट के फैसले के अनुसार अब झारखंड में निकाय चुनाव दलगत आधार पर नहीं होंगे. कहने का मतलब उम्मीदवारों को राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह नहीं मिलेगा. झारखंड में पुरानी व्यवस्था प्रभाव में होगा. मेयर का चुनाव सीधे होगा, वहीं डिप्टी मेयर का चयन वार्ड पार्षद मिलकर करेंगे.
कैबिनेट ने नगरपालिका संशोधन अधिनियम को स्वीकृति प्रदान कर दी है. इसके साथ ही राज्य में संपत्ति की गणना का आधार भी बदल जाएगा.
नगर निकायों में प्रोपर्टी टैक्स का निर्धारण अब सर्किल दर के आधार पर होगा और कामर्शियल भवनों के लिए टैक्स की दर सामान्य से दोगुना होगा. मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में 24 प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई.
कैबिनेट में लिए गए निर्णय के अनुसार राज्य के नगर निकायों में अब दलगत आधार पर मेयर अथवा अध्यक्ष का चुनाव नहीं होगा. पूर्व के नियम को अपनाते हुए सरकार ने तय किया है कि मेयर का चयन दलगत आधार के बगैर होगा.
मतलब यह कि उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल नहीं मिलेगा. इसी प्रकार डिप्टी मेयर अथवा उपाध्यक्ष का चुनाव सीधे नहीं होगा, बल्कि निर्वाचित वार्ड पार्षदों के बीच से किसी एक का चयन वार्ड पार्षद ही करेंगे. वार्ड पार्षदों का निर्वाचन होने के बाद इसके लिए अलग से तिथि निर्धारित कर चुनाव कराया जाएगा.
राज्य सरकार के पास होगी मेयर को हटाने की शक्ति
संशोधित एक्ट के अनुसार अगर मेयर अथवा अध्यक्ष लगातार तीन से अधिक बैठकों में बिना पर्याप्त कारण के अनुपस्थत रहते हैं, अथवा जानबूझकर अपने कर्तव्यों की अनदेखी करते हैं, तो उन्हें राज्य सरकार हटा सकेगी.
इसके अलावा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम होने की स्थिति में भी अथवा किसी आपराधिक मामले में छह माह से अधिक फरार होने अथवा दोषी करार होने के बाद बाद राज्य सरकार उनसे स्पष्टीकरण पूछेगी एवं समुचित अवसर देने के बाद आदेश पारित कर हटा सकेगी.
एक बार हटाए गए अध्यक्ष अथवा महापौर को पूरे कार्यकाल के दौरान फिर से अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन की पात्रता नहीं होगी.
निकायों की आमदनी बढ़ेगी
नियमावली में संशोधन के साथ ही राज्य के शहरी क्षेत्रों में प्रोपर्टी टैक्स की गणना का आधार बदल जाएगा. अभी तक एआरवी (एनुअल रेंटल वैल्यू) के आधार पर प्रोपर्टी टैक्स की वसूली की जा रही थी, जिसमें सड़कों के आधार पर प्रोपर्टी की कीमत लगाई गई थी. नई व्यवस्था में सर्किल रेट से निर्धारित संपत्ति की कीमत के आधार पर प्रोपर्टी टैक्स की गणना होगी.
इससे आम उपभोक्ताओं को कम कर देना होगा और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को अधिक टैक्स देना होगा. सीधी बात यह कि जिसकी जितनी कमाई होगी, उससे उतनी राशि वसूली जाएगी. भले ही दोनों संपत्ति एक ही गली, एक ही इलाके में क्यों नहीं हो. पूर्व की व्यवस्था में दरों के निर्धारण की कोई स्पष्ट सीमा नहीं थी, लेकिन नई व्यवस्था में इसे एक साथ अथवा दो साल में बदलने का प्रविधान किया जाएगा.
ऐसे लगेगा टैक्स
अगर आपकी आवासीय संपत्ति 10 लाख रुपये की है, तो आपको सालाना 0.075 प्रतिशत की दर से 750 रुपये प्रोपर्टी टैक्स अदा करनी होगी. लेकिन, इसी गली में आपकी इतनी ही मूल्य की व्यावसायिक संपत्ति के लिए 1500 रुपये सालाना जमा कराना होगा.
अभी के नियम के अनुसार व्यावसायिक और आवासीय संपत्तियों के लिए दरों का निर्धारण स्पष्ट तौर पर अलग-अलग नहीं है. यह सुधार 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया है और आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत केंद्र ने इसके लिए सुझाव दिए थे.