अब मुस्लिम महिलाएं घर की चहारदीवारी तक सीमित नहीं हैं. वो भी दीन के काम में आगे कदम बढ़ा रही हैं. शहर के मानगो में ओल्ड पुरुलिया रोड पर एक मस्जिद पूरी तरह महिलाओं के लिए बनाई जा रही है. अहले हदीस मस्जिद के परिसर में ही औरतों की मस्जिद की ये पूरी तरह अलग इमारत तैयार हो रही है.
ये झारखंड की पहली मस्जिद है जो सिर्फ महिलाओं के लिए है और जिसमें मर्द के दाखिल होने पर पाबंदी है. इस मस्जिद में रमजान में औरतें तरावीह की नमाज अदा करती हैं. मस्जिद में औरतें जुमा की भी नमाज अदा करती हैं. यहां ईद पर भी औरतें अपनी जमात के साथ नमाज अदा कीं.
ये मस्जिद ओल्ड पुरुलिया रोड पर मस्जिद-ए-अहले हदीस परिसर में ही बनी है. इस मस्जिद का चैनल गेट गली में खुलता है. जबकि, अहले हदीस मस्जिद का गेट ओल्ड पुरुलिया रोड पर है. गेट अलग होने से महिलाओं को अपनी जाने में सहूलियत होती है. इस मस्जिद में महिलाओं का वजू खाना भी है.
औरतें अपनी मस्जिद में गली वाले चैनल गेट से दाखिल होने के बाद अपनी ही मस्जिद में वजू करती हैं और नमाज अदा करती हैं. पेश इमाम के नमाज पढ़ाने की आवाज यहां तक जाए इसके लिए यहां लाउड स्पीकर लगाए गए हैं. इस मस्जिद में औरतों की नमाज जमात से होती है.
ये औरतें अहले हदीस मस्जिद के पेश इमाम मोहम्मद उमैर सलफी की इमामत में ही नमाज पढ़ती हैं. पेश इमाम के नमाज पढ़ाने की आवाज यहां तक जाए इसके लिए यहां लाउड स्पीकर लगाए गए हैं. महिलाओं की मस्जिद की दो मंजिला इमारत पूरी तरह बंद है.
मस्जिद में दूसरी मंजिल पर लगी खिड़कियों में परदे हैं.

औरतें अदा कर रही नमाज
शहर में अहले हदीस मसलक की सात और मस्जिदें हैं. इन मस्जिदों में भी महिलाएं तरावीह की नमाज अदा कर रही हैं. इनमें चेपा पुल के करीब प्रोफेसर कॉलोनी मस्जिद, आजाद नगर क्रास रोड नंबर आठ अहले हदीस मस्जिद, कपाली में कबीर पोलीटेक्निक मस्जिद, शास्त्रीनगर की सलफी मस्जिद, जुगसलाई में झोपड़ा मस्जिद के पास अहले हदीस मस्जिद और टेल्को के बारीनगर की अहले हदीस मस्जिद हैं.
यहां होती है 11 रकअत की तरावीह
अहले हदीस मस्जिद में तरावीह की नमाज 11 रकअत होती है. एशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ी जाती है. पेश इमाम मौलाना मो. उमैर सलफी बताते हैं कि हजरत आयशा र. से रवायत है कि हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. ने रमजान में रात को 11 रकअत से ज्यादा नमाज नहीं पढ़ी।
कुरआन भी सीख रही महिलाएं
मानगो के महिला मदरसे बाग-ए-आयशा में महिलाएं कुरआन-ए-मजीद सीख रही हैं. मदरसे की संचालिका जेबा कादरी के देखरेख में चलने वाली महिलाओं की ये कुरआन की कक्षा 10 दिन तक चलेगी. कुरआन सिखाने के अलावा यहां महिलाओं के बारे में कलाम पाक में क्या क्या कहा गया है, ये भी बताया जा रहा है.
विरोध शुरू, आ रहे हैं फतवा
यहां इमाम से लेकर दरबान तक सभी महिलाएं ही होंगी. हालांकि इस्लामिक धर्म गुरुओं का कहना है कि महिलाएं इमामत (आगे खड़े होकर नमाज पढ़ना) नहीं कर सकती. इसलिए इसका विरोध भी शुरू हो चुका है. फतवा भी आ रहे हैं. यह मस्जिद समाजसेवी डॉ नूरुज्जमां खान बनवा रहे हैं.
वे अल-इमदाद एजुकेशन वेलफेयर एंड चैरिटेबल सोसायटी बनाकर करीब 25 साल से गरीब बच्चियों के लिए हाईस्कूल चला रहे हैं. वे सोसायटी के महासचिव भी हैं.
उनका कहना है- जब महिलाएं पुरुषों के साथ हज कर सकती हैं तो मस्जिद जाने में एतराज किस बात का. इस मस्जिद में महिलाएं बिना किसी बंदिश के धार्मिक रीतियों के पालन करने के साथ ही आपस में मिलकर नई-नई चीजों को सीखकर जीवन के नए पहलुओं को सीखेंगी और अंधविश्वास को दूर भी करेंगी.
करीब डेढ़ करोड़ की लागत से डेढ़ एकड़ जमीन पर बन रही इस मस्जिद में एक साथ पांच सौ महिलाएं पांच वक्त की नमाज, सामूहिक तरावीह और इज्तेमा यानी सामूहिक बैठक कर सकेंगी.
डॉ नूरुज्जमां खान ने बताया कि महिला दरबानों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि वह अपनी सुरक्षा के साथ-साथ यहां आने वाली महिलाओं की सुरक्षा कर सकें.

विरोधियों ने जमीन छीनी, सहयोग करने वालों ने दान दी
डॉ नूरुज्जमां खान कहते हैं कि जब स्कूल के बाजू की जमीन पर महिलाओं के लिए मस्जिद बनाने की बात शुरू हुई तो कुछ लोगों ने यह जमीन नमाज पढ़ने के लिए ले ली. लेकिन मैंने हार नहीं मानी. समाज के प्रबुद्ध लोगों का साथ मिला तो कई लोगों ने स्कूल से सटी जमीन दान में दे दी ताकि महिलाओं की इबादतगाह बन सके.
सभी तरह के विरोध के बावजूद जनवरी-2021 में मस्जिद की नींव रखी. यहां मस्जिद के साथ स्कूल में खेल मैदान, हॉस्टल, कंप्यूटर लैब, डिजिटल लाइब्रेरी होगी. इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं, विश्वविद्यालयों, झारखंड जैक बोर्ड के सिलेबस पर आधारित किताबें मौजूद होंगी.
वहीं इनाम मदीना मस्जिद मानगो आज़ाद नगर के मुफ्ती अब्दुल मालिक मिस्बाही कहते हैं महिलाओं को मस्जिद जाने की मनाही है. ई. (586–590 – 644) में खलीफा हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म (रअ) ने अपने जमाने से ही रोक लगा दी थी. उनके मस्जिद जाने से फितना फसाद बढ़ने लगा था. उनकी सुरक्षा के लिए यह फैसला लिया गया था.