Pushkar Mahto
अभिनेता से नेता बने पूर्व केन्द्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा को आज अपनी साख बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है. लोकतंत्र के भीड़ में शत्रुघ्न सिन्हा की लोकप्रियता कहां है, यह सहजता व सरलता से प्रतीत होने लगी है. स्वयं को आत्मचिंतन व मंथन करने की आवश्यकता आन पड़ी है. शॉटगन के छवि वाले शत्रुघ्न सिन्हा की एक झलक पाने को तरसने वाली रांची ने उन्हें निराश कर दिया है.
रांची में आयोजित एक प्रेसवार्ता के दौरान बिहारी बाबू बौने नजर आ रहे थे. लाखों निगाहों से अलग-थलग कुछ लोगों के बीच सिमटे-सिमटे से थे तो उनकी बानगी में वो तेज तेवर व रवानी खामोश व मध्यम-मध्यम से थे. स्वयं को थमे-थमे सा महसूस हो रहे थे.
ये हाव-भाव भीषण गर्मी के मौसम के कारण था या फिर तन-मन वर्तमान पार्टी में सहज महसूस नहीं कर रहा था. शत्रुध्न सिन्हा कि तेज तर्रार व फर्राटेदार बोलने का अंदाज का आज नहीं होना कई सवालों के साथ उन्हें घेरते हैं.
विरोध व बगावत की राजनीति करना कोई असान काम नहीं है. वो भी बड़ी पार्टी के अन्दर. बतौर अभिनेता आपको प्रत्येक डायलॉग लेखक व डायरेक्टर के अनुसार अभिव्यक्ति करना है. लेकिन, लोकतंत्र जिसे राजनीतिक भाषा में भीड़तंत्र भी कहा जाता है, इसमें भावनाओं की अभिव्यक्ति भाव या भावना नहीं बल्कि लोगों के मुद्दे पर खरा उतरना पड़ता है.
प्रजातांत्रिक देश भारत की राजनीति के संदर्भ में कल तक कहा जाता रहा है कि ‘‘नाचना न गाना,पाइद-पाइद के रीझना. ‘‘रिझ-रंग करने वाले व्यक्ति की अभिव्यक्ति पर आज का भीड़तंत्र आसनी से विश्वास नहीं करना है. चूंकि अभिनेता से नेता बने लोगों ने जनता उम्मीदों पर आज कहीं भी खरा नहीं उतरे हैं. लोग सवालों के साथ उसने अपनी अभिव्यक्तियां कई प्रकार से करने लगे है.
जैसे कि ‘‘शत्रुघ्न सिन्हा का संसदीय क्षेत्र से लापता रहने के संदर्भ में पोस्टर चिपकाना. मीडिया द्वारा जनता के मुद्दे पर मुखर होकर बेबाक सवाल खड़ा करना. स्वयं एक पार्टी बदलकर दूसरे पार्टी में जाना और बिहार से कांग्रेस पार्टी के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ना तथा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी से लोकसभा का चुनाव पत्नी श्रीमती पूनम सिन्हा को लड़ना,कितना न्याय प्रिय बात है. क्या यह स्वार्थपूर्ण राजनीति नहीं है. आखिर शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं तय करें कि लोकसभा चुनाव 2019 में वे किसका शत्रु और किनके लिए धन का धर्म का निर्वाहन कर रहें है.
आज सोशल मीडिया का युग है. फेसबुक,वाट्सेप,ट्वीटर,वगैरह के माध्यम से लोगों ने दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है. लोगों से छुपना या फिर छुपाना असान काम नहीं है. चाहे वह शत्रुध्न सिन्हा ही क्यों न हों. आज तो वे स्वयं जनता के सवालों के घेरे में है. अपने संसदीय क्षेत्र व लोगों का कितना प्रतिशत भला व कल्याण कर चुके है!
अभिनेता बनकर पर्दें में विकास व कल्याण करना आसान है लेकिन रियल लाइफ में नामुमकिन ही है. भीड़ तंत्र से भागकर सियासत कर पाना कोई आसान कार्य नहीं है. अभिनय कला के माध्यम से पर्दे पर इतिहास रचने वालें लोगों के लिए रियल लाइफ में चुनौती के सामने भी बड़ी चुनौती है. चूकि यहां डायलॉग से नहीं बल्कि वास्तविक का सामना करना पड़ता है.
शत्रुघ्न सिन्हा के सामने आज करो या मरो की स्थिति है. अगर,कांग्रेस पार्टी पीट जाती है तो उन्हें भारी फजीहतों का सामना करना पड़ सकता है. जिसके लिए शत्रुघ्न सिन्हा शत्रु बने हैं, उनके लिए वे मजाक का पात्र बनकर रह जाएगें.