Ranchi: लोक सभा चुनाव 2019 के लिए चार सीटों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने राग अलाप रहे हैं. हर दल के नेता लोहरदगा, चाईबासा, खूंटी और रांची लोकसभा सीट पर अपनी मजबूत स्थिति के दावे बता रहे हैं.
पार्टी के नेता कार्यकर्ता भी खुलेआम इस बात को कहने से नहीं चूक रहे हैं कि वे उक्त सीटों से निश्चित जीत रहे हैं और तमाम बातों को सुनकर यहां मौजूद प्रत्याशियों की धड़कनें और भी तेज हो रही है.
सत्ता पक्ष को जहां पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा के बड़े नेताओं की कैंपेनिंग पर भरोसा है. वहीं, विपक्ष के महागंठबंधन के नेताओं को इस बात का डर सता रहा है. क्या वास्तव में मोदी के विकास कार्यों से पूरी जनता प्रभावित है और वे इस बार भी हार का सामना करेंगे.
वजह चाहे जो हो, नेताओं की मुश्किलें उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही हैं. बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों के रणनीतिकार कुछ और ही बोल रहे हैं. जानकारों की मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी नक्सलियों के भय और इसी बीच राष्ट्रहित के मुद्दे सिर चढ़कर बोल रहा है. यहां से कम वोटों के अंतरों से ही जीत होगी, लेकिन संबंधित दल के नेता जीतेंगे जरूर.
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ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलवाद-राष्ट्रवाद ही है चुनावी मुद्दे
सूबे के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सबसे बड़ी समस्या के रूप में हर बार की तरह इस बार भी नक्सली प्रभावी हैं। तपकरा के रहनेवाले युवक सरफराज का स्पष्ट कहना है कि इस बार यहां राष्ट्रवाद को ही लोग चुनावी मुद्दे के रूप में देख रहे हैं.
सरफराज ने बताया कि बाकि मुद्दे फिलहाल जनता के जेहन से भी गायब हैं. सालों से नक्सली वारदातों को झेल रहे लोग अब शांत वातावरण में रहना पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा कहीं न कहीं लोग इस बात से भी सहमत हैं कि जंगल के बीचों बीच तक जहां कल तक नक्सली खुलेआम घूमते, अब वहां सड़कें हैं और बिजली की भी सुविधा है.
सरफराज का कहना है कि लोग खाना खायें या न खायें, लेकिन भयमुक्त माहौल में रहें तो लंबे समय तक जिंदा रह सकते हैं. खूंटी, लोहरदगा, चाईबासा, सिमडेगा, गुमला, चतरा समेत अन्य घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र सालों से पूर्व के शासनकाल में बढ़ते अपराध को देख चुकी है. अब यहां ऐसी बातें नहीं हैं.
सरफराज कहते हैं कि घर से निकलते ही कौम के कई लोग कहते हैं हिंदू-मुस्लिम में सांप्रादायिक भावनाएं होती हैं, लेकिन कोई हिंदू किसी मुस्लिम या कोई मुस्लिम किसी हिंदू को नहीं मारता है. यह महज राजनीतिक बात है.
मोदी का आना समय की मांग
बिरेन्द्र रनिया और चाईबासा क्षेत्र से सटे इलाके के निवासी रौतिया समुदाय के युवक बिरेन्द्र सिंह का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब स्थिति बदली है. भटके हुए युवा अब शांत हैं. पलायन भी रूका है. किसी न किसी रूप से छोटा-मोटा व्यवसाय कर लोग अपना घर-द्वार चला रहे हैं, यह सब मोदी शासन में ही संभव हो सका है, इसलिये मोदी सरकार के प्रति लगाव ग्रामीणों के बीच बन चुका है.
बाहरी तबके के बीच बैठने पर लगता है कि फिर से यूपीए का शासन आ जायेगा, लेकिन यह महज एक उपर में होनेवाली राजनीति का रूप है. जिसके झांसे में अब पढ़ा लिखा तबका आनेवाला नहीं है. जो काम कर रहा है, उसे फिर से मौका देना कोई गलती नहीं होगी.
मुस्लिम-ईसाई पत्नियों को मनाने में नाकाम
राजेश राजेश नायक तुपूदाना निवासी का कहना है कि महागंठबंधन के तहत चुनाव लड़ा गया है. कहा जा रहा कांग्रेस ही चुनाव जीतेगी. लेकिन, इसके नहीं जीतने के कई कारण हैं, जो मीडिया में सामने नहीं आते.
बहरहाल, ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में इस बार दलित वर्ग के लोग एक मुस्त एनडीए के समर्थन में वोट दिये हैं. इसके अलावा मुस्लिम और ईसाई समुदाय की महिलाओं को भी समझाने में मुस्लिम और ईसाई नाकाम रहे हैं, जो मोदी के पक्ष में वोट गये हैं.
नायक का कहना है कि महागंठबंधन तो बना है, लेकिन रांची के अलावा चाईबासा और अन्य जगहों पर यहां आपसी फूट जबरदस्त देखी जा सकती है.
ये हैं प्रत्याशी
लोहरदगा से भाजपा के सुदर्शन भगत और कांग्रेस के सुखदेव भगत, खूंटी से भाजपा के अर्जुन मुंडा और सत्ताधारी दल के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के भाई कालीचरण सिंह मुंडा कांग्रेस से, रांची से भाजपा के संजय सेठ और कांग्रेस उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय के बीच टक्कर बताया जा रहा है. इन तीनों सीटों के लिए मतदान हो चुके हैं.
वहीं चाईबासा से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ही भाजपा प्रत्याशी हैं, जिनका टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा के साथ है. यहां रविवार को मतदान है.
साभार: देशप्राण