Ranchi: झारखंड की राजधानी रांची के पूर्व डीसी आईएएस छवि रंजन को आज ईडी गिरफ्तार कर सकती है. प्रवर्तन निदेशाल ने आईएएस छवि रंजन को आज पूछताछ के लिए रांची स्थित अपने दफ्तर बुलाया है.
रांची में हुए जमीन घोटाले मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनी लांड्रिंग के तहत जांच कर रही है. इस मामले में ईडी ने तीसरी बार समन कर रांची के पूर्व डीसी आईएएस छवि रंजन को सोमवार (24 अप्रैल) को पूछताछ के लिए बुलाया है.
ईडी ऑफिस पहुंचने से पहले छवि रंजन बडे वकीलों से कानूनी एडवाइस ले रहे हैं. उन्हें आशंंका है कि ईडी पूछताछ के बाद उनकी गिरफ्तारी हो सकती है.
रांची में सेना के कब्जे वाली 4.45 एकड जमीन और चेशायर होम रोड स्थित एक एकड जनी के दस्तावेज में फर्जीवाडा कर उसे बेचा गया, इसका खुलासा ईडी ने किया है. इसकी पुष्टि फारेंसिक जांच में हो गई है.
ईडी ने इस मामले में 13 अप्रैल को छवि रंजन सहित 18 लोगों के 22 ठिकाने पर छापेमारी की थी. इसमें ईडी को बडगाई के राजस्व उप निरीक्षक (एसआई) भानु प्रताप के ठिकाने से बडी मात्रा में सरकारी जमीन के दस्तावेज मिले थे. भानु प्रताप पर रेकर्ड में छेडछाड कर जमीन की अवैध तरीके से म्यूटेशन का आरोप है.
इससे पहले ईडी ने छवि रंजन को समन कर 21 अप्रैल को पूछताछ के लिए बुलाया था. पर, उन्होंने दो हफ्ते का समय देने का आवेदन दिया था. इसके बा ईडी ने छवि रंजन को सोमवार को हाजिर होने को कहा था.
छवि रंजन के निर्देश पर बनाए जमीन के गलत दस्तावेज
सेना के कब्जेवाली और चेशायर होम रोड स्थित जमीन बेचने के मामले में रिमांड पर लिये गए 7 आरोपियों ने बडा खुलासा किया है. बडगाई अंचल के सीआई भानु प्रताप प्रसाद, अफसर अली, इम्तियाज अहमद, प्रदीप बागची, मो सद्दाम हुसैनतल्ला खान और फैयाज खान ने ईडी को बताया कि जमीन के मूल दस्तावेज में छेडछाड की गई है.
उन्होंने बताया कि रांची के तत्कालीन डीसी छवि रंजन के निर्देश पर उनलोगों ने गलत दस्तावेज बनाए. इसलिए लिए पैसे भी मिले थे.
आरोपियों ने ईडी को बताया कि शुरूआत में हम अफसरों को रखने के लिए छोटे-मोटे दस्तावेजों में छेडछाड किया करते थे. पर, एक ऐसा समय आया कि अब प्रशासनिक अफसरों की ओर से ही जमीन के दस्तावेजों मे छेडछाड करने का ऑफर दिया जाने लगा. इसके लिए मोटी रकम मिलने लगी.
प्रशासन का शह मिलने से जमीन की प्रकृति, रैयतों के नाम, रजिस्ट्री की तिथि और रकबा बदलने में कोई दिक्कत नहीं रही. अधिकारियों के वजह से यह सब आसान हो गया. इसके बाद जमीन के दस्तावेजों में छेडछाड कर इसे दबंगों को बेचा जाने लगा. प्रशासन की ओर से जमीन पर कब्जा दिलाने में भी सहयोग किया जाता था.