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Ranchi: पेट्रोल डीजल गैस सिलेंडर में बढ़ोतरी के साथ-साथ अब रसोई में काम आने वाला तेल भी दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है. इसकी वजह भी ट्रांसपोर्टेशन और पैकिंग के खर्च में बढ़ोतरी बताई जा रही है.
दूसरा कारण देश में 70 फ़ीसदी आयल की खपत हो रही है वह विदेशी पाम व सोया तेल ही है जिन के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़े हैं.
खास बात यह है कि कोरोना में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए सरसों के तेल पर ज्यादा भरोसा जताया गया है. कारण सरसों के तेल में सैचुरेटेड फैट्स 6 से 7 फ़ीसदी ही है.
50 सालों में सरसों-पाम आयल में इतनी तेजी नहीं
रांची की एक किराना विक्रेता ने बताया कि पिछले 50 सालों में सरसों और पाम आयल में इतनी तेजी कभी नहीं देखी गई. पिछले साल लॉकडाउन के समय सरसों का तेल ₹105 प्रति लीटर तक गया था. इस बार ₹200 पर पहुंच गया है. यही हाल सोयाबीन और सनफ्लावर तेल का है. सामान्यत 80 से ₹95 में बिकने वाले सोयाबीन और सनफ्लावर रिफाइंड तेल 170 से ₹200 पहुंच गए हैं.
पाम आयल में सिचुएटेड फैट ज्यादा इसलिए सेहत के लिए खतरनाक
डॉक्टरों का कहना है कि विदेशों से पाम आयल आयात होता है. यह केमिकल से साफ किया जाता है, जो हानिकारक है. विदेशी तेल में सैचुरेटेड फैट अधिक होता है. पामोलिन में 40% तक सैचुरेटेड फैट होता है जबकि सरसों के तेल में से 7% ही है. शरीर अधिकतम 10% सेंचुरी डेट ही बचा सकता है.
पैकिंग मैटेरियल महंगा होना भी वजह
पीलू के थोक विक्रेता बताते हैं कि डीजल के दाम बढ़ने की वजह से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च 4 से ₹5 किलो तक बढ़ गया है. इसके अलावा सरकार पैकिंग मैटेरियल एक्सपोर्ट कर रही है. इससे स्टील के पीपी भी महंगे हो गए हैं. पहले जो खाली पीपा 50 से ₹60 का था, वह अब ₹100 का मिल रहा है.