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मोबाइल फोन से गर्भवती महिलाओं की अल्ट्रासाउंड जांच होगी

मोबाइल फोन से गर्भवती महिलाओं की अल्ट्रासाउंड जांच होगी

बिल गेट्स

मैं वर्षों से कह रहा हूं कि दुनिया बेहतर हो रही है. उदाहरण के लिए अपने पांचवें जन्मदिन से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या बीस साल में आधे से कम हो गई है. यह संख्या 2000 में एक करोड़ थी और आज 40 लाख है. लेकिन वर्तमान घटनाओं के कारण कहना मुश्किल है कि भविष्य अतीत से अच्छा होगा. यूक्रेन पर रूस के हमले से खाने की चीजों और तेल, गैस के मूल्य बढ़े हैं, कोविड- 19 महामारी ने बच्चों को वैक्सीन लगाने के प्रयासों में बाधा डाली है. आर्थिक विकास दर धीमी पड़ी है. जलवायु परिवर्तन से मौसम के भयानक तेवर सामने आ रहे हैं.

इन मुश्किलों के बीच कुछ आविष्कारों के कारण स्वास्थ्य की दिशा में अच्छी खबरें सामने आई हैं. इनमें से कुछ इनोवेशन का तो उपयोग भी होने लगा है. अभी हाल में लगे आघातों के बावजूद नई वैक्सीन से पोलियो के खात्मे में मदद मिलेगी. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से होने वाली अल्ट्रासाउंड टेस्टिंग से माताओं और उनके शिशुओं की जान बच सकेगी. इस इनोवेशन का परीक्षण जारी है.

दो देशों में टेस्टिंग शुरू

गर्भवती महिला की अल्ट्रासाउंड जांच के लिए मां के पेट पर कुछ बार मोबाइल या टेबलेट ऊपर-नीचे स्वाइप करना होगा. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करने वाला सॉफ्टवेयर किसी प्रशिक्षित व्यक्ति के समान पूरी जानकारी दे सकेगा. केन्या और दक्षिण अफ्रीका में इसकी टेस्टिंग हो रही है.

पांच साल से कम आयु के बच्चों की मौत में नाटकीय गिरावट आई है, पर जन्म के पहले तीस दिनों के अंदर मरने वाले बच्चों की संख्या में ऐसी कमी नहीं हो रही है. 2019 में 19 लाख नवजात शिशुओं की मौत हुई थी. वर्ष 2000 की तुलना में यह केवल एक तिहाई कम है. नवजात शिशुओं की मौत के कारण पेचीदा हैं. रोकथाम के लिए उन महिलाओं की पहचान जरूरी है जिन्हें गर्भावस्था में जोखिम हो सकते हैं. अमेरिका जैसे अमीर देशों में बार-बार जांच, लैब टेस्ट और अल्ट्रासाउंड से ऐसा होता है. गरीब देशों में अल्ट्रासाउंड मशीनों की उपलब्धि मुश्किल है. वे बड़ी और खर्चीली हैं. उनके उपयोग के लिए खास ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है. इसलिए प्रक्रिया को सरल बनाने का काम चल रहा है. बड़ी मशीन की बजाय मोबाइल फोन या टेबलेट से जांच हो सकेगी.

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कुछ इनोवेशन से दूर हैं. दस से पंद्रह साल में एचआईवी का इलाज हो सकेगा. जीन थैरेपी से ऐसा करने के प्रयोग चल रहे हैं. व्यक्ति के जेनेटिक स्वरूप के छोटे हिस्से की एडिटिंग के जरिए जानलेवा बीमारी से बचने का रास्ता खुलेगा. इस समय विश्व में तीन करोड़ 80 लाख व्यक्ति एचआईवी से पीड़ित हैं. हर साल 15 लाख नए लोग संक्रमित होते हैं. उन्हें हर दिन एंटी वायरल दवाइयां लेनी पड़ती हैं. जीन एडिटिंग का प्रयोग सफल होने पर लोगों को दवाइयां लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इन दिनों बहुत सारी खराब खबरों के बीच वैज्ञानिकों की कुछ खोजें उम्मीद जगाती हैं. जेनेटिक इंजीनियरिंग की टेक्नोलॉजी सीआरआईएसपीआर से जीनोम में बदलाव कई घातक बीमारियों से मुक्ति दिलाएगा. स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में नए प्रयोग भी उजले भविष्य की आशा है.

(गेट्स माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर हैं.)

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