करुणानिधि ने पिछले 50 सालों से डीएमके की कमान संभाल रखी थी. उनके बाद संगठन की कमान पर अटकलों को विराम लगाते हुए दो साल पहले उन्होंने अपने बेटे एमके स्टालिन को सियासी वारिस घोषित कर दिया था. हालांकि तब स्टालिन और उनके भाई अझागिरी में सत्ता संघर्ष के बाद से अझागिरी अलग-थलग हैं.
साल 2016 में हालांकि स्टालिन को अपना वारिस घोषित करते हुए करुणानिधि ने स्पष्ट किया था कि इसका मतलब यह नहीं है वे खुद संन्यास ले रहे हैं. उस वक्त उन्होंने कहा था कि यह कार्यकर्ताओं को संदेश है कि पार्टी का उत्तराधिकारी मौजूद है. इस घोषणा के बाद उन्होंने अझागिरी और स्टालिन के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष पर विराम लगाने की भी कोशिश की थी.
गौरतलब है कि डीएमके ने पिछले साल जनवरी में स्टालिन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था, हालांकि करुणानिधि ने पार्टी सुप्रीमो की कमान अपने हाथ में ही रखी थी. अझागिरी की पार्टी से दूरी तब और बढ़ गई, जब करुणानिधि की बेटी कनिमोझी ने मई, 2016 में कहा था कि उनके पिता के बाद सौतेले भाई स्टालिन ही पार्टी संभालेंगे.
स्टालिन की खासियत है कि वह पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में आम लोगों से कहीं भी मिल लेते हैं, इस कारण वह लोगों में काफी तेजी से लोकप्रिय हो गए.