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मीडिया मालिकों और प्रबंधकों की नजर में पत्रकार अनुत्पादक जीव होता है, इसलिए उसे न्यूनतम पगार मिलती है.. बड़े-छोटे सभी मीडिया घरानों में पत्रकार ही सबसे ज्यादा शोषण का शिकार है. यह विडंबना ही है कि वही पत्रकार शोषित और पीड़ितों और मजलूमों की आवाज भी बनता है.
पत्रकारों की भलाई और उनके हक की लड़ाई लड़ने के लिए जो संगठन बने हुए हैं, उनमें भी ज्यादातर वैसे ही पत्रकार सक्रिय हैं जो अब मेनस्ट्रीम मीडिया में नहीं हैं अथवा उससे अंशकालिक रूप से जुड़े हुए हैं. मुख्यधारा का पत्रकार इन संगठनों में कम दिखता है, क्योंकि वह तो कोल्हू का बैल है जो 29 दिन काम करता है, डे प्लान, नाईट प्लान, स्पेशल रिपोर्ट, पैकेजिंग, स्थापना दिवस, 15 अगस्त, 26 जनवरी का विज्ञापन करने आदि की चक्की में पिसकर थका हारा देर रात घर जाता है और सुबह आंख खुलते ही मीटिंग में लेट होने के डर से बिना नाश्ता किए दफ्तर भागता है. उसे बस इंतजार होता है महीने की आखिरी या कहीं पहली तारीख का. जब सैलरी क्रेडिट होते ही दुनिया के सारे रंजो-गम उसे थोड़े छोटे लगने लगते हैं.
विज्ञापन या आर्थिक मदद नहीं मिलती
मुसीबत उन पत्रकारों के साथ है, जो या तो छोटे संस्थानों में हैं, जहां नौकरी से लेकर सैलरी तक सब कुछ अनिश्चित है या फिर अपने दम पर संघर्ष करने वाले पत्रकार.. ये लोग बहुत हद तक सच्चे मायनों में पत्रकारिता तो करते हैं. लेकिन इनके साथ भी समस्या है क्योंकि सच्ची और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए कोई विज्ञापन या आर्थिक मदद नहीं मिलती.
छोटे शहरों और छोटे संस्थानों में पत्रकारिता एक पेशे के रूप में बहुत असुरक्षित, जोखिम भरी और खतरनाक है. इसके दम पर अपना और अपने परिवार का भविष्य देखने वालों को समय रहते चेत जाना चाहिए. पत्रकारिता अब वैसे लोग ही कर सकते हैं, जिनके पास आय के वैकल्पिक स्रोत हों.
पत्रकारिता में पहचान पर पैसा नहीं
अगर आप अविवाहित हैं तो कोशिश करें कि आपकी जीवन साथी कामकाजी हो और अगर विवाहित हैं तो अपनी जीवनसाथी की प्रतिभा को पहचानिए, और उसे आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने में मदद कीजिये. क्योंकि पत्रकारिता आपको पहचान तो दिला सकती है. मगर आज की भौतिक दुनिया में आपके परिवार की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने लायक भी पैसा नहीं दिला सकती. इसलिए अगर मास कॉम या जर्नलिज्म का कोई विद्यार्थी पत्रकार बनने की इच्छा लिए आपके पास आये, तो उसे घनघोर रूप से हतोत्साहित करें. उसे बताएं कि बच्चू ठेले पर चाय-पकौड़ा बेच लो पर पत्रकार मत बनो. एक बार पत्रकर बन गये तो फिर चाय-पकौड़ा बेचने लायक भी नहीं बचोगे..