इस समय डेंगू भारत के कई राज्यों जिनमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार प्रमुख हैं में एपिडेमिक के रूप में आतंक फैलाए हुए हैं. साथ ही अन्य राज्यों में भी अपना पैर पसार रहा है. यह एक वायरल रोग है. जो आमतौर पर बरसात और बरसात के तुरंत बाद दिखाई पड़ने लगता है एवं मच्छरों के काटने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है.
डेंगू के कारक
डेंगू का कारक ग्रुप बी अरबोवायरस है यह उष्णतटबंधीय (ट्रापिकल एवं उपउष्णतटबंधीय (सब ट्रॉपिकल) महाद्वीपों और देशों में रहने वाले मनुष्यों को प्रभावित करता है. इसका मुख्य वाहक मनुष्य स्वयं है जिससे यह संक्रमण रक्त पीने वाले एक विशेष मच्छर की मादा एडीज इजिप्टी है. जो संक्रमित व्यक्ति का रक्त पीकर 8 दिन से 14 दिन के भीतर स्वयं संक्रमित हो जाती है और अपने बाकी जीवन काल में इस रोग के वायरस को दूसरे मनुष्यों तक पहुंचती रहती है. साफ जल में अंडे देने वाले ये मच्छर घरों के आसपास गड्ढों, छतों पर बेकार पड़े बर्तनों, गमलों और कूलर कूलर इत्यादि में बारिश के साफ जल में अपने जीवन चक्र को प्रारंभ करते हैं.
डेंगू पर विशेष जानकारी
1-वैसे क्लासिकल डेंगू सामान्य तौर पर प्राणघातक नहीं होता. किंतु दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में यही वायरस हिमोरेजिक (रक्त स्रावी) डेंगू के लक्षण उत्पन्न करता है जो जीवन के लिए काफी घातक है.
2- डेंगू को मनुष्य से मनुष्य तक पहुंचाने वाला मच्छर एडीज इजिप्टी गंदी नालियों में नहीं, साफ जल में अंडे देता है और पार्कों आदि के घास में भी निवास करता है और दिन में भी अपने शिकार की तलाश में रहता है.
3- डेंगू संक्रमितों के रक्त में प्लेटलेट काउंट बहुत तेजी से कम होने लगता है. यही संख्या डेढ़ लाख से घटकर जब 20,000 के नीचे जाने लगती है तो पीड़ित व्यक्ति की स्किन पर छोटे छोटे काले धब्बे बनने लगते हैं जो छोटी रक्तवाहिनियों के फट जाने के कारण होता है. प्लेटलेट काउंट कम हो जाने के कारण शरीर के किसी भी रंध्र से रक्त स्राव शुरू हो सकत है, जो कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बनता है.
4- जगह ,परिस्थितियों और अलग- अलग व्यक्ति के इम्यूनिटी और ससेप्टिबिलिटी के अनुसार इसके लक्षणों एवं प्रभाव में भिन्नता देखी जा सकती है.
5- डेंगू की एक एपिडेमिक से दूसरे एपिडेमिक के बीच 2 से 3 साल का अंतराल मिलता है. बाकी समय यहां वहां इक्का-दुक्का डेंगू के केस देखे जाते हैं ऐसा एपिडेमिक के समय मिलने वाली इम्यूनिटी के कारण होता है.
6- डेंगू को फैलाने वाले एक दूसरे से मिलते जुलते इस एंटीजन के अब तक 4 से ज्यादा स्ट्रेन सक्रिय हैं. इनमें से किसी एक द्वारा संक्रमित होने के बाद आदमी कम से कम 1 साल के लिए इम्यूनिटी प्राप्त कर लेता है.
इनक्यूबेशन पीरियड
5 से 14 दिन तक, यह वह समय होता है जिसमें संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के बाद मनुष्य शरीर में आया हुआ वायरस अपनी कॉलोनी को इतना बढ़ाता है कि संक्रमित व्यक्ति के अंदर विभिन्न लक्षण उत्पन्न होने लगें. लक्षण उत्पन्न होने के बाद यह रोग 1 से 10 दिन तक बना रहता है.
सावधानियां
किसी रोग से भयभीत होने से ज्यादा जरूरी उससे पूरी तरह लड़ने के लिए तैयार हो जाया जाय. कुछ सावधानियां बरत कर हम डेंगू से संक्रमित होने से बच सकते हैं.
1- जैसा कि हम जानते हैं कि यह मौसम मच्छरों के प्रजनन के लिए बहुत ही सहयोगी है. इसे ध्यान में रखकर हर संभव प्रयास करना चाहिए कि बरसात का जल घर के भीतर अथवा बाहर किसी बर्तन अथवा गड्ढे में लगातार कुछ दिनों तक इकट्ठा ना रह पाए.
2- यदि घर के आस-पास जलजमाव हो रहा हो और उसका निस्तारण तुरंत संभव ना हो तो किसी प्रभावी इंसेक्टिसाइड का छिड़काव करवाना चाहिए.
3- जैसा कि हमें पता है कि यह मच्छर पाकुर ऑफिसर और घरों में भी दिन के समय निकलने में कोई परहेज नहीं करता. अतः हम ऐसे वस्त्रों का प्रयोग करें जिससे शरीर का ज्यादा हिस्सा ढका रहे.
4- शरीर के खुले अंगों पर दिन के समय किसी अच्छे मच्छर रोधी क्रीम अथवा तेल का प्रयोग लेपन के लिए किया जा सकता है. बन तुलसी के तेल की कुछ बूंदे ही इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर देती हैं.
5- रात में मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य किया जाय. दिन में घर, कम्युनिटी हॉल ,स्कूल ,ऑफिस इत्यादि में दिन के समय भी मॉस्किटो रिपेलर्स का प्रयोग सुनिश्चित किया जाय.
6- पौष्टिक आहार और योग व्यायाम के प्रयोग से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखा जाय.
लक्षण
1- अचानक तेज बुखार चढ़ जाना. तापमान तेज कपकपी के साथ 39-4°C40.5°C(103-105°f) तक पहुंच जाता है. उसके पहले कोई लक्षण नहीं रहता.
2- तेज सर दर्द खासतौर से ललाट पर आंखों के ऊपर. पलके फूली फूली लगती हैं आंखों को छूने पर दुखन महसूस होती है.
3- आंखें लाल, चुभन युक्त और प्रकाश के प्रति असहिष्णु अर्थात प्रकाश की प्रति भय ( फोटोफोबिया). आंखों से पानी गिरता है.
4- सर्दी जुकाम खांसी अथवा स्वसन तंत्र की कोई शिकायत नहीं रहती.
5- हाथ पैर पीठ और हड्डियों के जोड़ों में भयानक दर्द होता है. यही कारण है कि इस रोग को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं.
6- पूरे शरीर में गोली मारने जैसा दर्द होता है और साथ में त्वचा और मांसपेशियों में स्पर्श कातरता(सोरनेस) महसूस होती है. जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों को छूने पर उनमें दुखन होती है अर्थात टेंडरनेस बना रहता है.
7- भूख की कमी तनाव और नाक से रक्त स्राव डेंगू के सामान्य लक्षण हैं.
8- अधिकांशतः मरीज बेचैन, चिंतित और तनावग्रस्त बना रहता है. अनिद्रा की भी शिकायत होती है.
9- चेहरे और हाथों की त्वचा पर लाल महीन दाने (ब्लाचेज) निकल आते हैं.
10- प्रारंभ में पल्स रेट सामान्य से तेज होता है किंतु प्रारंभ के दो-तीन दिन में तेज बुखार रहने पर भी सामान्य से कम हो जाता हैं.
11- तीन-चार दिन बाद पसीना होकर बुखार उतर जाता है. कभी-कभी बुखार उतरने के साथ पतली टट्टी भी होती है. एक-दो दिन के लिए तापमान सामान्य बना कर सकता है. इस बीच रोगी की परेशानियां दूर हो सकती हैं अथवा दुबारा फिर दो-तीन दिन के लिए कुछ मध्यम तापमान का बुखार चढ़ता है और पसीने के साथ समाप्त हो जाता है.
12- किसी किसी एपिडेमिक में चौथे पांचवें दिन के बाद डेंगू के रैश करीब-करीब प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति में दिखाई पड़ते हैं तो किसी किसी एपिडेमिक में यह एकदम से भी नहीं मिलते. यह इरप्शन तेजी से खुजली के साथ हाथ पैर चेहरा और बाकी शरीर पर फैल जाता है. अबकी वाले एपीडेमिक में दाने दिखाई पड़ रहे हैं.
13- किसी किसी संक्रमण में छाती और पेट के मध्य भाग एपीगैस्ट्रिक रीजन में दबाव के साथ मिचली और उल्टी के लक्षण भी पाए जाते हैं. साथ में पतली टट्टी के लक्षण भी मिलते हैं.
14-संक्रमण के तीसरे से चौथे दिन के मध्य रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या घटकर 2 से 3000 तक पहुंच जाती है.
15- किसी किसी संक्रमण में लिम्फैटिक ग्लैंड बढ़े हुए पाए जाते हैं जो छूने पर दर्द युक्त होते हैं.
16- रक्त में प्लेटलेट काउंट का कम होना भी डेंगू का एक प्रमुख इंडिकेटिव लक्षण है जो रक्त स्रावी अर्थात हेमोरेजिक डेंगू में काफी कम स्तर तक पहुंच जाता है एवं मरीज के जीवन के लिए घातक सिद्ध होता हैं.
17- कठोर हेमोरेजिक डेंगू के संक्रमण की अवस्था में ब्रेन हेमरेज और पलमोनरी ब्लीडिंग को होते हुए भी पाया जाता है.
डेंगू का होम्योपैथिक इलाज चिकित्सा :
एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में डेंगू के लिए किसी स्पेशल एंटीवायरल मेडिसिन का न होना होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को काफी महत्वपूर्ण बना देती है. होम्योपैथी में डेंगू की निश्चित और कारगर दवाएं उपलब्ध हैं जिन्होंने अब तक अपनी उपयोगिता को सफलतापूर्वक सिद्ध किया है.
बचाव के लिए होम्योपैथिक औषधियां :
1-यूपेटोरियम परप्यूरिका 200 (Eupatorium purpurica 200)
2- ट्राई नाइट्रो टेल्युवियन 200 (टी एन टी 200 )
3-मलेरिया आफिसिनेलिस 200 को भी बचाव करने वाली दवा के रूप में 15 दिन पर एक बार लिया जा सकता है.
( संक्रमण काल में उपरोक्त एक और दो नंबर की दोनों होम्योपैथिक औषधियों को एक -एक हफ्ते के अंतर पर बारी -बारी एक -एक खुराक लेते रहना डेंगू के संक्रमण से पूर्ण सुरक्षा प्रदान कर सकती है.)
(इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए गिलोय का मदर टिंचर टीनेस्पोरा क्यू 6 बूंद रोज एक बार लिया जा सकता है)
डेंगू हो जाने पर होम्योपैथिक औषधियां-
डेंगू हो जाने के बाद औषधियों के चयन के मामले में होम्योपैथी बहुत ही समृद्ध है. विभिन्न लक्षणों के अनुसार होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा चुनी हुई दवाओं से डेंगू को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है. इनमें से कुछ मुख्य औषधियों निम्न वत हैं-
एकोनाइट नैपलस 30 ,आर्सेनिक एल्बम 30, जेलसीमियम 30 , यूपेटोरियम परफाेलिएटम 200,यूपेटोरियम परप्यूरिका 200, बेलाडोना 200, रस टॉक्स 30, डल्कामारा 30 , नक्स वॉमिका 200, चिनिनम सल्फ 30 , चिनिनम आर्स 30, इपिकाक30, चिरायता मदर टिंचर, गिलोय मदर टिंचर , पाइरोजेनियम 200, आर्निका माण्ट 30 एवं टी एन टी 30 , 200 , एलोज 30 लेपटेंड्रा मदर टिंकचर, एसिड नाइट्रिक इत्यादि दवाओं में से होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा चुनी हुई औषधि लेकर डेंगू को परास्त किया जा सकता है.
अनुभूत प्रयोग
मैंने अपने 40 साल के होम्योपैथिक चिकित्सा कार्य अवधि में सैकड़ों डेंगू के मरीजों को होम्योपैथिक दवा देकर ठीक होते हुए देखा है.
टी एन टी 30 के साथ किसी अन्य लाक्षणिक आधार पर चुनी हुई दवा को देकर निश्चित और त्वरित लाभ अर्जित किया गया है. इनमें भी मैंने टी एन टी 30 एवं आर्सेनिक अल्ब 30 बारी-बारी से दो-दो घंटे पर और यूपेटोरियम परप्यूरिका 200 रात में सोते समय एक बार के प्रयोग से प्लेटलेट काउंट 40000 के नीचे आ जाने पर भी दो-तीन दिन के अंदर पूरी तरह लाभ और प्लेटलेट काउंट का डेढ़ लाख से ऊपर पहुंचना सुनिश्चित होते हुए बार-बार देखा है.
नोट :
1- (टी एन टी वही चिर परिचित विस्फोटक है जिसके प्रयोग से बड़ी-बड़ी इमारतों को मिनटों में ध्वस्त कर दिया जाता है. होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में औषधि के रूप में शक्ति कृत होकर 30 अथवा 200 की शक्ति में प्रयोग करने पर प्लेटलेट्स काउंट किसी भी कारणवश कम हुआ हो तो अत्यंत अल्प समय में उसे सामान्य की तरफ बढ़ा देती है. इसके मेरे पास अनेक पैथोलॉजिकल साक्ष्य उपलब्ध हैं. टी एन टी जैसे विध्वंसक शक्ति का भी सार्थक प्रयोग होम्योपैथी में ही संभव है. यह औषधि होम्योपैथी को पूर्ण साइंस सिद्ध करने में 1 दिन भागीदार बनेगी.)
2- औषधियां होम्योपैथी चिकित्सक के राय पर ही ली जानी चाहिए.
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