झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड में पूरी तरह चुनावी मोड में दिखाई पड़ रही है. हेमंत सोरेन खतियानी जोहार यात्रा पर हैं. उनका कद झारखंड की राजनीति में दिनोदिन बढ़ता जा रहा है. कभी झारखंड में वह दिन भी था. जब झामुमो पूरी विधानसभा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारने की स्थिति में नहीं थी. दूसरी तरफ कांग्रेस 81 विधानसभा सीटों पर प्रमुख दावेदार थी.
हेमंत सोरेन की सूझबूझ, साहसिक फैसले और उनकी मेहनत के कारण आज स्थिति उलट है. कांग्रेस अपनी जमीन खो रही है और झामुमो हर दिन अपनी जमीन मजबूत कर रहा है. अगर झारखंड में कांग्रेस की यही स्थिति रही, तो भविष्य में झारखंड की राजनीति में कांग्रेस अपने को कहां पायेगी, यह देखनेवाली बात होगी.
बड़े फैसलों का क्रेडिट ले रही झामुमो
सरकार में रहते हुए ऐसा कोई भी फैसला नहीं दिखा, जिसका क्रेडिट कांग्रेस पार्टी को मिला हो. जबसे हेमंत सरकार ने 1932 के खतियान और ओबीसी आरक्षण का विधेयक विधानसभा से पारित किया है. इसका पूरा का पूरा श्रेय झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिल रहा है. यही नहीं, हाल के कुछ और साहसिक फैसलों और अपने बेलाग बयानों तथा जनता के बीच लगातार उपस्थिति से हेमंत सोरेन मजबूत हुए हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस यह कहने की स्थिति में भी नहीं है कि उसकी मदद से यह सब हो पाया है.

अंदरूनी गुटबाजी से परेशान कांग्रेस
कांग्रेस सत्ता में बराबर की हिस्सेदार है. लेकिन जहां तक झारखंड के स्थानीय मुद्दों और भाजपा से दो-दो हाथ करने की बात है, इसमें कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी से परेशान है, वहीं झामुमो और उसके खेवनहार हेमंत सोरेन हर दिन झारखंड में अपने साहसिक फैसलों के कारण अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं.
यही नहीं, वह भाजपा को भी मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं. हर दिन राजनीतिक मैदान में उसे ललकार रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस अपने कार्यालयों में बैठ कर और कागजों में बयान देने के अलावा कुछ खास नहीं कर पा रही है.
यहां के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को ही ले लीजिए. सही मायनो में उन्हें कोई भी कांग्रेस का अनुभवी और पुराना नेता दिल से मानने को तैयार नहीं. कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग बार-बार उन्हें सवालों में घेरता रहा है. उनके खिलाफ माहौल बनाने में जुटा है.
दिल्ली में बैठे कुछ नेता भी राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से समय लेकर इनकी शिकायत करनेवाले हैं.
दिल्ली से मयूर शेखर झा ने एक ट्विट किया है. उन्होंने ट्विटर पर सरेआम राजेश ठाकुर की धज्जियां उड़ायी हैं. क्या-क्या उन्होंने नहीं लिखा है.

हाईकमान के फैसलों का विरोध
इसके इतर अभी हाल ही में झारखंड में कांग्रेस जिला अध्यक्षों को लेकर बवाल हो गया था. इस सूची में पहले न तो कोई मुस्लिम कैंडिडेट का नाम था, न ही दलित, न ही कोई महिला. कांग्रेस की सूची में मुसलमानों का नाम न होना आश्चर्यचकित करनेवाला था. और तो और उस सूची में सात ब्राह्मण लोगों का नाम था. सबको लगा कि पार्टी का भगवाकरण हो गया क्या?
हैरानी की बात यह थी कि क्या झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष को इस सूची के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी. क्या प्रभारी को भी इसकी कोई जानकारी नहीं थी? फिर क्या था, विवाद हो गया? 48 घंटों के भीतर फिर प्रदेश अध्यक्ष ने प्रेस कांफ्रेंस की और कहा भूल हो गयी थी. सुधार कर लिया गया है.
चार नामों को बदला गया. लेकिन उसके बाद भी साहिबगंज के कार्यकर्ता मंत्री आलमगीर आलम का पुतला जला रहे हैं.
फिलहाल झारखंड में हेमंत सरकार के भीतर कांग्रेस पार्टी का क्या रोल है, यह किसी से छिपा नहीं है. शुरू से कांग्रेसी विधायक शिकायत करते रहे कि प्रशासन उनकी बात नहीं सुनता. अधिकारी घास नहीं डालते. लेकिन उस फरियाद का क्या फायदा? अध्यक्ष ने कभी भी उनकी बात शासन- प्रशासन तक नहीं पहुंचायी.
पिछले चुनाव में झारखंड में कांग्रेस ने 16 सीटें जीती थीं, बाद बंधु तिर्की और प्रदीप यादव पार्टी में शामिल हो गये. अभी 18 की संख्या है.