News Highlights
- 1 बंगाल में दुर्गा पूजा (Durga Puja in West Bengal)
- 2 दुगा पूजा महालया 2019 (Durga Puja 2019 Mahalaya)
- 3 दुर्गा पूजा सप्तमी 2019 (Durga Puja 2019 Saptami)
- 4 दुर्गा पूजा 2019 नवरात्रि की तारीख (Durga Puja 2019 Navratri Date)
- 5 दुर्गा अष्टमी पूजा 2019 (Durga Puja 2019 Ashtami)
- 6 शारदीय नवरात्रि 2019 की महत्वपूर्ण तारीखें (Durga Puja 2019 Bengali Date)
Durga Puja 2019: मां दुर्गा पूजा 9 दिनों तक करिए, जानिए नवरात्र उपासना के लिए बंगाल की खास रीति
Durga Puja 2019: दुर्गा पूजा की शुरूआत महालया से शुरू हो जाती है. बंगाली समुदाय के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्व माना जाता है. खासकर बंगाल के लोग महालया का बेसब्री से इंतजार करते हैं.
महालया के साथ ही एक तरफ जहां श्राद्ध खत्म हो जाते हैं वहीं यह भी माना जाता है कि इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर आगमन करती है और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती है.
महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है और वह दुर्गा पूजा पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.
बंगाल में दुर्गा पूजा (Durga Puja in West Bengal)
बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियां काफी पहले ही शुरू हो जाती हैं. यहां पंचमी से दुर्गोत्सव की शुरुआत होती है. महाकाली की नगरी कोलकाता में तो पांच दिनों तक श्रद्धा और आस्था का ज्वार थमने का नाम ही नहीं लेगा.
इन पूजा के चार दिनों में सभी लोग खुशियां मनाते हैं. जिस प्रकार लड़की विवाह के बाद अपने मायके आती है, उसी प्रकार बंगाल में श्रद्धालु इसी मान्यता के साथ यह त्योहार मनाते हैं कि दुर्गा मां अपने मायके आई हैं.
दुर्गोत्सव से पहले तो देवी मां की सुन्दर और मनोहारी मूर्तियां बनाई जाती हैं. प्रमुख रूप से कोलकाता के कुमोरटुली नामक स्थान पर कलाकार मूर्तियों को आकार देते हैं.
बंगाली मूर्तिकार द्वारा देवी दुर्गा के साथ लंबोदर गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियां बनाई जाती हैं. देश के बहुत से प्रांतों में बंगाली मूर्तिकारों की खूब मांग रहती है. यहां निर्मित मूर्तियां देश के अन्य स्थानों के साथ ही विदेशों में भी भेजी जाती हैं.
दुर्गा पूजा के लिए कोलकाता में विशाल पंडाल सजाए जाते हैं. शहर और दूर गांवों से आकर शिल्पकार पंडालों का निर्माण करते हैं. इन भव्य पंडालों को बनाने में आने वाली लागत लाखों रुपए में होती है. वहां के रहवासी इन दिनों जमकर खरीददारी की जाती है.
फुटपाथ पर लोग सजावट की बहुत सारी सामग्री बेचते हैं. दुकानों से लेकर शॉपिंग मॉल तक हर जगह भीड़ का रेला दिखाई पड़ता है. सभी अपनी-अपनी पसंद की चीजें खरीदते हैं. लोग अपने परिजनों, संबंधियों को वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देते हैं. विजयादशमी के दिन मां का विसर्जन होता है.

दुगा पूजा महालया 2019 (Durga Puja 2019 Mahalaya)
पितृ पक्ष की आखिरी श्राद्ध तिथि को महालया पर्व मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्या को महालया अमावस्या (Mahalaya Amavasya 2019) कहा जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार महालया पर्व हर साल सितंबर या अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है. इस बार महालया 28 सितंबर को है.
महालया का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया. महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर पाएगा.
ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया. महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की.
इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है. मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.
महालया कैसे मनाया जाता है
महालया वैसे तो बंगालियों का त्योहार है लेकिन इसे देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. बंगाल के लोगों के लिए महालया पर्व का विशेष महत्व है. मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं.
महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है. यह नवरात्रि और दुर्गा पूजा की के शुरुआत का प्रतीक है. मान्यता है कि महिषासुर नाम के राक्षस के सर्वनाश के लिए महालया के दिन मां दुर्गा का आह्वान किया गया था. कहा जाता है कि महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है.
फिर शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं.
हालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं. दरअसल, मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारिगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम महालया से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं. महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर छोड़ दिया जाता है.
महालया के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का काम करते हैं. इस काम से पहले वह विशेष पूजा भी करते हैं. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.
महालया पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्हें तर्पण दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं.
वहीं जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो सर्व पितृ अमावस्या (Pitru Amavasya) के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है.
दुर्गा पूजा सप्तमी 2019 (Durga Puja 2019 Saptami)
इस साल 5 अक्टूबर, रविवार को महा सप्तमी मनाई जाएगी. जिसकी तैयारी में लोग काफी लंबे समय से लगे हुए हैं. नवरात्र के 7वें दिन महा सप्तमी होती है. इस दिन मां दुर्गा के सातवें रूप कालरात्रि की अराधना पूजा की जाती है.
दुर्गा पूजा दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्द हिंदू त्योहार है जो दस-सशस्त्र देवी दुर्गा की पूजा का जश्न मनाता है. दुर्गा पूजा दुष्ट राक्षस महिषासुर पर अपनी जीत का जश्न मनाती है जिसने पूरी दुनिया को धमकी दी थी क्योंकि वह अजेय माना जाता था.
दानव को नष्ट करने के लिए, सभी देवताओं की सामूहिक ऊर्जा से दुर्गा उत्पन्न हुईं, उनकी प्रत्येक दस भुजाओं में प्रत्येक देवता के हथियार थे. इस प्रकार, दुर्गा पूजा के सातवें दिन (सप्तमी) को देवी ने महिषासुर के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की जो विजयादशमी (10 वें दिन) उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हो गई.
महा सप्तमी का महत्व क्या है?
महा सप्तमी का दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि भक्त देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके दिव्य आशीर्वाद की कामना करते हैं. चैत्र नवरात्रि के सभी नौ दिनों के दौरान, भक्त हिंदू देवी शक्ति की पूजा करते हैं.
इस उत्सव के दौरान, देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग अवतार पूरे भारत में पूजी की जाती हैं. इस दिन को देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी मान्यता के साथ मनाया जाता है.
आश्विन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नवरात्रि पर्व मनाया जाता है. इसे शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं. साल में आने वाली 4 नवरात्रियों में से इस नवरात्रि का सबसे अधिक महत्व माना गया है. यह व्रत उपवास, आदिशक्ति माँ जगदम्बा की पूजा-अर्चना, जप और ध्यान का पर्व है.
देवी भागवत के अनुसार विद्या, धन एवं पुत्र की कामना करने वालों को नवरात्र व्रत जरूर रखना चाहिए. आमतौर पर हम सभी ये जानते हैं कि नवरात्रि की शुरुआत आश्विन प्रतिपदा तिथि से होती है. पर बंगाल के लोगों के लिए ये पूजा एक दिन पहले महालया(Mahalya) से शुरू हो जाती है.
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सांतवें दिन कालरात्री, आठवें दिन महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.
प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्रि का पहला दिन 29 सितंबर को घटस्थापना (कलश स्थापना) की जाती है. 3 अक्टूबर को ललिता पंचमी है, 6 अक्टूबर को महाष्टमी व 7 अक्टूबर को महानवमी का पर्व मनाया जाएगा. 8 अक्टूबर को दशहरा है.
दुर्गा अष्टमी पूजा 2019 (Durga Puja 2019 Ashtami)
नवरात्रि या दुर्गा पूजा के आठवें दिन को अष्टमी या दुर्गा अष्टमी के रूप में जाना जाता है. हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन को सबसे शुभ दिन माना जाता है. सबसे महत्वपूर्ण दुर्गा अष्टमी जिसे महाष्टमी भी कहा जाता है.
यह अश्विनी के महीने में नौ दिनों की नवरात्री उत्सव के दौरान मनाई जाती है. साथ ही अन्य देवों की भी पूजा की जाती है. दुर्गा अष्टमी को मासिक दुर्गा अष्टमी या मास दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है.
लोग अपने मनोवांछित फल को प्राप्त करने के उदेश्य से जैसे की जीवन में चल रही किसी समस्या के समाधान के लिए या किसी भी दुःख का निवारण करने के लिए माँ दुर्गा अष्टमी का पूजन करते है.
इस दिन भक्त दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए सख्त उपवास रखते है हिन्दू धर्म के अनुयायीयों के लिए दुर्गा अष्टमी व्रत एक महत्वपूर्ण आराधना है.
दुर्गा अष्टमी इतिहास और कथा (Masik Durga Ashtami history and story in hindi)
प्राचीन समय में दुर्गम नामक एक दुष्ट और क्रूर दानव रहता था, वह बहुत ही शक्तिशाली था, अपनी क्रूरता से उसने तीनों लोकों में अत्याचार कर रखा था. उसकी दुष्टता से पृथ्वी, आकाश और ब्रह्माण्ड तीनों जगह लोग पीड़ित थे.
उसने ऐसा आतंक फैलाया था, कि आतंक के डर से सभी देवता कैलाश में चले गए, क्योंकि देवता उसे मार नहीं सकते थे, और न ही उसे सजा दे सकते थे. सभी देवता ने भगवान शिव जी से इस बारे में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.
अंत में विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवता के साथ मिलकर भगवान शंकर ने एक मार्ग निकाला और सबने अपनी उर्जा अर्थात अपनी शक्तियों को साझा करके संयुकत रूप से शुक्ल पक्ष अष्टमी को देवी दुर्गा को जन्म दिया.
उसके बाद उन्होंने उन्हें सबसे शक्तिशाली हथियार को देकर दानव के साथ एक कठोर युद्ध को छेड़ दिया, फिर देवी दुर्गा ने उसको बिना किसी समय को लगाये तुरंत दानव का संहार कर दिया. वह दानव दुर्ग सेन के नाम से भी जाना जाता था.
उसके बाद तीनों लोकों में खुशियों के साथ ही जयकारे लगने लगे, और इस दिन को ही दुर्गाष्टमी की उत्पति हुई. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई.
मासिक दुर्गा अष्टमी पूजा विधि (Masik Durga Ashtami puja vidhi)
देवी दुर्गा जी के नौ रूप है हर एक विशेष दिन देवी के एक विशेष रूप का पूजन किया जाता है जिनके नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है. मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन विशेष रूप से माँ दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है.
इस दिन महागौरी के रूप की तुलना शंख, चन्द्रमा या चमेली के सफ़ेद रंग से की जाती है, इस रूप में महागौरी एक 8 वर्ष की युवा बच्चे की तरह मासूम दिखती है, इस दिन वो विशेष शांति और दया बरसाती है.
इस दिन के रूप में उनके चार हाथ में से दो हाथ आशीर्वाद और वरदान देने की मुद्रा में होते है तथा अन्य दो हाथ में त्रिशूल और डमरू रहता है साथ ही इस दिन देवी को सफ़ेद या हरे रंग की साड़ी में एक बैल के ऊपर विराजित या सवार होते दिखाया गया है.
दुर्गा अष्टमी के दिन देवी दुर्गा के हथियारों की पूजा की जाती है और हथियारों के प्रदर्शन के कारण इस दिन को लोकप्रिय रूप से विराष्ट्मी के रूप में भी जाना जाता है.
दुर्गा अष्टमी के दिन भक्त सुबह जल्दी से स्नान करके देवी दुर्गा से प्रार्थना करते है और पूजन के लिए लाल फूल, लाल चन्दन, दीया, धूप इत्यादि इन सामग्रियों से पूजा करते है, और देवी को अर्पण करने के लिए विशेष रूप से नैवेध को तैयार किया जाता है.
साथ ही देवी के पसंद का गुलाबी फुल, केला, नारियल, पान के पत्ते, लोंग, इलायची, सूखे मेवे इत्यादी को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है और पंचामृत भी बनाया जाता है.
यह पंचामृत दही, दूध, शहद, गाय के घी और चीनी इन पांचो सामग्रियों को मिलाकर बनाया जाता है, और एक वेदी बनाकर उसपर अखंड ज्योति जलाई जाती है, और हाथों में फूल, अक्षत को लेकर इस मंत्र का जाप किया जाता है जो कि निम्नलिखित है-
“सर्व मंगलाय मांगल्ये, शिवे सर्वथा साधिके
सरन्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते”
इसके बाद आप उस फूल और अक्षत को माँ दुर्गा को समर्पित कर दें, फिर बाद में आप दुर्गा चालीसा का पाठ कर आरती करके पूजा करे.
दुर्गा अष्टमी व्रत का उपवास स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से रख सकते है. कुछ भक्त बिना अन्न और जल के उपवास रखते है, तो कुछ भक्त दूध, फल इत्यादी का सेवन करके इस व्रत का उपवास करते है. इस दिन मांसाहारी भोजन करना या शराब का सेवन करना वर्जित होता है.
व्रत करने वाले भक्तो को आराम और विलासिता से दूर रहते हुए नीचे सोना चाहिए. पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में बीज बोने की परम्परा है जोकि मिट्टी के बर्तन में बोये जाते है, जिसमे बीज आठ दिन के पूजन तक 3 से 5 इंच तक बढ़ जाता है.
अष्टमी के दिन उसको देवी को समर्पित करने के बाद में परिवार के सभी सदस्यों में इस बीज को वितरित कर दिया जाता है. इसे लोग प्रसाद स्वरूप अपने पास रखते है ऐसा माना जाता है कि इसको रखने से समृधि आती है.
अन्य भी बहुत सारे तरीके है जिनसे देवी दुर्गा को खुश करने की कोशिश की जाती है, जिसमे शामिल है घंटी बजाना, शंखनाद करना या शंख बजाना. इस दिन को ऐसा माना जाता है कि घर को पुरे दिन के लिए खाली नहीं छोड़ना चाहिए. इस दिन देवी की पूजा दो बार की जाती है और सूर्यास्त के बाद पूजा की समाप्ति हो जाती है.
दुर्गा अष्टमी के दिन कुवांरी लड़कियों को भोजन कराने की परम्परा है माना जाता है कि इस दिन विशेष कर जो 6 वर्ष से 12 वर्ष के आयु वर्ग की लड़कियां हैं. वे पृथ्वी पर माँ दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती है.
इस दिन 5, 7, 9 और 11 लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमन्त्रित कर उनके स्वागत में उनके पांव को पहले धोया जाता है, फिर उनका पूजन किया जाता है तत्पश्चात उन्हें भोजन में खीर, हलवा, पुड़ी, मिठाई इत्यादि खाद्य पदार्थ दिए जाते है और उसके बाद कुछ उपहार देकर उन्हें सम्मानित किया जाता है.
इन सारे विधि कार्यों को करने के बाद पूजा समाप्त हो जाती है और अंत में माता का आशीर्वाद आपको प्राप्त हो जाता है.
दुर्गा अष्टमी के दिन का महत्व (Masik Durga Ashtami Importance)
दुर्गा अष्टमी के व्रत को अध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए और देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है. संस्कृत की भाषा में दुर्गा शब्द का अर्थ होता है अपराजित अर्थात जो किसी से भी कभी पराजित या हारा नहीं हो उसको अपराजित कहते है और अष्टमी का अर्थ होता है आठवा दिन.
इस अष्टमी के दिन महिषासुर नामक राक्षस पर देवी दुर्गा ने जीत हासिल की थी. हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन देवी ने अपने भयानक और रौद्र रूप को धारण किया था, इसलिए इस दिन को देवी भद्रकाली के रूप में भी जाना जाता है.
इस दिन का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योकि इस दिन दुष्ट और क्रूर राक्षस को उन्होंने मार कर सारे ब्रह्माण्ड को भय मुक्त किया था. साथ ही यह माना जाता है कि इस दिन जो भी पूरी भक्ति और श्रधा से पूर्ण समर्पण के साथ दुर्गा अष्टमी का व्रत करता है उसके जीवन में खुशी और अच्छे भाग्य का आगमन होता है.
दुर्गा अष्टमी का महत्त्व इसलिए ज्यादा बढ़ जाता है क्योकि इस दिन देवी भक्तो पर अपनी विशेष कृपा की बरसात करती है. इस दिन देवी का उपवास करने वाले भक्तों को जीवन में दिव्य सरंक्षण, समृधि, व्यापार में लाभ, विकास, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है. सभी बीमारियों से शरीर को छुटकारा प्राप्त होता है अर्थात शरीर रोग मुक्त और भय मुक्त होता है.
शारदीय नवरात्रि 2019 की महत्वपूर्ण तारीखें (Durga Puja 2019 Bengali Date)
मां दुर्गा की आराधना का पर्व है नवरात्र. मां के नौ रूपों की भक्ति से हर मनोकामना पूरी होती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माता दुर्गा नौ दिनों के लिए मां दुर्गा अपने भक्तों के दुख दूर करने पृथ्वी लोक में आती हैं, इन दिनों में यदि विधि विधान से माता की आराधना की जाए, तो वह प्रसन्न होंगी और सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगी.
शारदीय नवरात्र में नौ दिनों में मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि स्वरूप का दर्शन-पूजन किया जाता है. नौ शक्तियों के मिलन को नवरात्र कहते हैं.
नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि के लिए उपवास, संयम, नियम, भजन,पूजन और योग साधना करते हैं. नौ दिनों तक दुर्गासप्तशती का पाठ, हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए.
- 29 सितंबर- प्रतिपदा – पहला दिन, घट या कलश स्थापना। इस दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होगी.
- 30 सितंबर- द्वितीया – दूसरा दिन। इस दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है.
- 1 अक्टूबर- तृतीया – तीसरा दिन। इस दिन दुर्गा जी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाएगी.
- 2 अक्टूबर- चतुर्थी – चौथा दिन। माता दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा-अर्चना होगी.
- 3 अक्टूबर- पंचमी – पांचवां दिन- इस दिन मां भगवती के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है.
- 4 अक्टूबर- षष्ठी- छठा दिन- इस दिन माता दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है.
- 5 अक्टूबर- सप्तमी- सातवां दिन- इस दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की आराधना की जाती है.
- 6 अक्टूबर- अष्टमी – आठवां दिन- दुर्गा अष्टमी, नवमी पूजन। इस दिन माता दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है.
- 7 अक्टूबर- नवमी – नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण.
- 8 अक्टूबर- दशमी- जिन लोगों ने माता दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की होगी, वे विधि विधान से माता का विसर्जन करेंगे। इस दिन विजयादशमी या दशहरा मनाया जाएगा.