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Anand Prabhu Patanjali
महामारी की मार के बीच वैश्विक आर्थिक सुधार के लिए कमर कस रही दुनिया में हम जीवन के ज्यादातर क्षेत्रों में बेहद लचीले और ताल-मेल बिठाने वाले रहे हैं. इस विशिष्टता का उपयोग प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मई 2020 में मनोबल बढ़ाने और देश की आर्थिक स्थिति की बहाली हेतु रास्ता तैयार करने के लिए एक आदर्श वाक्य- आत्मनिर्भर भारत के रूप में भी किया गया. इस संकट के कारण करोड़ों दिहाड़ी मजदूरों की आजीविका पर अनिश्चितता का संकट मंडरा रहा है, ऐसे में लचीला बनना और ताल-मेल बिठाना स्थानीय सरकारों और जमीनी संगठनों के लिए समय की जरुरत है.

झारखंड के खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड में, लगभग 25 दैनिक वेतनभोगी महिला मजदूरों ने जमीनी स्तर के संगठन, लाइफ एजुकेशन एंड डेवलपमेंट सेंटर (लीड्स) की सहायता से, सौर संचालित सुरक्षा मास्क और सेनेटरी पैड सिलाई केंद्र स्थापित किया. कुछ साल पहले तक, गाँव की ये महिलाएँ अलग-अलग तरह के दिहाड़ी काम कर हर महीने दो से तीन हज़ार की छोटी रकम ही कमा पाती थीं. पिछले साल संगठन ने 5 किलोवाट सौर पैनलों से संचालित रागी आटा, अरहर और दाल प्रसंस्करण इकाई स्थापित किया, ताकि बिजली कटौती या वोल्टेज उतार-चढ़ाव की समस्या के बिना इसे रोज़ 8-9 घंटे तक चलाया जा सके. आज, यहाँ प्रसंस्करण, पैकेजिंग और साथ ही सिलाई की जिम्मेदारी संभाल रहीं 25 पूर्णकालिक महिला कर्मचारी हैं जिनकी मासिक आमदनी लगभग 8000 रुपये है.

ऐसी ही एक सफल कहानी लातेहार जिले के महुआडांड गाँव की भी है, जहाँ जीरा फूल धान की न केवल जैविक रूप से खेती होती है, बल्कि विकेन्द्रीकृत सौर ऊर्जा के उपयोग से चावल तैयार और पैक भी किया जाता है. इन दोनों गांवों की महिलाओं की व्यक्तिगत आय बढ़ी है और उसके कारण इनके पारिवारिक बचत में भी वृद्धि हुई है. उत्पादों को सीधे झारखंड ग्रामीण आजीविका मिशन (जेएसएलपीएस) द्वारा खरीदा जाता है और पूरे देश में बेचा जाता है. यह सिर्फ ऐसे उदाहरणों में से एक है जहां आजीविका कार्यक्रमों में नवीकरणीय ऊर्जा के समाकलन से बिजली की कमी के कारण होने वाले उत्पादन अनिश्चितता को कम किया गया है, महिलाओं के आय में वृद्धि हुई है और बाजार मूल्य श्रृंखला में बिचौलियों को समाप्त किया गया है.
विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) और आजीविका प्रोत्साहन संबंधी नई नीति की रूपरेखा
पिछले महीने, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने डीआरई-सक्षम आजीविका साधनों के विकास और इन्हें बड़े पैमाने पर अपनाने हेतु अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए एक नई मसौदा नीति की रूपरेखा पेश की. इस दस्तावेज में, यह स्वीकार किया गया है कि देश में कृषि, कृषि-प्रसंस्करण, डेयरी (दुग्ध उत्पादन), पोल्ट्री (मुर्गीपालन), मत्स्य पालन, सिलाई और अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त पायलट मॉडल मौजूद हैं, साथ-ही-साथ इन व्यवसायों को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के स्थापित मॉडल भी हैं और बड़े पैमाने पर इन्हें अपनाया भी गया है. हालांकि, यह अभी भी भारत के 6 लाख गांवों के समग्र आजीविका गतिविधियों का एक छोटा सा हिस्सा भर है. झारखंड या किसी अन्य राज्य में, इस ढांचे को सफल बनाने के लिए विभिन्न विभागों के बीच और ज्यादा सहयोग और संचार की अहम जरुरत है. इस समय, झारखंड में इसे आगे ले जाने और इसे प्रभावी रूप से लागू करने की जिम्मेदारी रिन्यूएबल एनर्जी की स्टेट नोडल एजेंसी (एसएनए) – जरेडा की है. जरुरत न केवल एसएनए की कुशलता बढ़ाने की है, बल्कि ग्रामीण विकास मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, लघु और सूक्ष्म उद्योग मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे अन्य विभागों के बीच प्रौद्योगिकी संबंधी जागरूकता बढ़ाने की भी है. डीआरई को ग्रामीण क्षेत्रों में अपने सभी कार्यक्रमों के एक हिस्से में शामिल करने की जिम्मेदारी इन मंत्रालयों की भी होनी चाहिए और जिला स्तर पर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण किया जाना चाहिए.

लक्ष्य हेतु एकीकृत वित्तपोषण मॉडल की आवश्यकता
भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश सर्वकालिक उच्च स्तर पर है, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के आकलन के मुताबिक वर्ष 2019-2020 में 8.4 बिलियन डॉलर (करीब 620 अरब रुपये) का निवेश हुआ. यह राष्ट्रीय स्तर पर है, लेकिन जिला स्तर पर ये अप्रासंगिक हो जाते हैं. यहां तक कि वित्तदाताओं के बीच, अभी भी यह धारणा मौजूद है कि यह तकनीक अपेक्षाकृत रूप से अनूठी है, उन्हें इनकी जानकारी भी कम है. वे इन परियोजनाओं के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले आजीविका उपकरणों के लिए ऋण देने को उच्च जोखिम के रूप में देखते हैं. ऋणदाताओं का कम भरोसा बाजार आंकड़ों की कमी के कारण और बढ़ जाता है, जिनमें परियोजनाओं और उनके प्रदर्शन, कर्जदारों के क्रेडिट एक्सटेंशन और ऐसे उत्पादों के लिए ऋण की व्यवस्था का विवरण शामिल है. वर्तमान में सभी पायलट मॉडल्स को अनुदान, सीएसआर या एसएमई के माध्यम से मीक्रोफिनांसिंग के जरिए वित्तपोषित किया गया है. भारत में सौर उर्जा संचालित आजीविकाओं के वित्तपोषण पर सीईईवी की रिपोर्ट में पाया गया है कि इन आजीविका उत्पादों में निवेश आकर्षक या औसत है, जिसमें ज्यादातर मौकों पर सामान्य भुगतान अवधि 12 से 24 महीनों की होती है.
राज्यों के पास अलग-अलग विभागों के तहत विभिन्न कार्यक्रमों के लिए आवंटित बजट होते हैं, इनके वर्षों तक अप्रयुक्त पड़े रहने के कई उदाहरण हैं. डीआरई सक्षम आजीविका को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न विभागों को एक साथ मिलकर अप्रयुक्त संसाधनों का संयोजन करना चाहिए जिससे आर्थिक गतिविधि शुरू होगी और और रोजगार पैदा होंगे. डीआरई सक्षम बनाने में सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तपोषण की कमी ने लक्ष्य उपयोगकर्ताओं को पंगु बना रखा है, जबकि क्रेडिट कार्ड, एलपीजी सब्सिडी और फोन बैंकिंग तक उनकी पहुंच है. जब राज्य आजीविका मिशन इस तरह के डीआरई सक्षम परियोजनाओं द्वारा तैयार उत्पादों को बेच रही है, तब भरोसेमंद प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता कोई बहाना नहीं हो सकती. डीआरई सक्षम आजीविका के प्रसार हेतु अनुकूल माहौल बनाने के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ विभिन्न विभागों के बीच बेहतर सहयोग और संसाधन संयोजन की ज़रूरत वक़्त की मांग है.
(लेखक, पॉवर फ़ॉर ऑल संस्था के प्रोग्राम मैनेजर एवं अक्षय ऊर्जा विशेषज्ञ हैं)