
भोजपुरी के विलियम शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर जब अपने जीवकोपार्जन के लिये खडगपुर, जगन्नाथ पुरी जाते तो हैं किंतु उनकी अपनी गांव की मिट्टी की भाषा से प्रेम उन्हें वहीं खींच लाईं जहाँ गांव देहात में चलने वाले नाटक, नाच, कला, के लिये कुछ करने का मौका मिला. 18 दिसम्बर 1857 को बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में जन्में भिखारी ठाकुर ने भोजपुरिया फुहरपन में साहित्यिक अक्षत छींटा. बेटी बेचवा, विधवा विलाप, भाई विरोध, विदेशिया, कलयुग प्रेम, गंगा स्नान, जैसे नाटकों से भिखारी ठाकुर ने सामाजिक कुरीतियों पर कटाक्ष कर एक नवचेतना जागृत किया.
गवना कराइ सैंया घर बइठवले से,
अपने लोभइले परदेस रे बिदेसिया।।
चढ़ली जवानियां बैरन भइली हमरी रे,
के मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया।।
भोजपुरी जनजीवन का यह राग है, भोजपुरी लोक संगीत की आत्मा ऐसे गीतों में बसती है, जिसके सृजक हैं भिखारी ठाकुर.
भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व में कई आश्चर्यजनक खासियतें थीं. महज अक्षर भर के ज्ञान के बावजूद उन्हें पूरा रामचरित मानस कंठस्थ था.

बहुआयामी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर एक लोक कलाकार के साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे. उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया. उनकी प्रतिभा का आलम यह था कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उनको ‘अनगढ़ हीरा’ कहा, तो जगदीशचंद्र माथुर ने कहा ‘भरत मुनि की परंपरा का कलाकार’.
भिखारी ठाकुर कई कामों में व्यस्त रहने के बावजूद भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे. उन्होंने तकरीबन 29 पुस्तकें लिखीं, जिस वजह से आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के संवाहक बने.
फिल्म विदेशिया ने भिखारी ठाकुर को खासी पहचान दिलायी. उस फिल्म की ये दो पंक्तियां आज भी भोजपुरी अंचल में मुहावरे की तरह गूंजती रहती हैं.
हंसि हंसि पनवा खीऔले बेईमनवा कि अपना बसे रे परदेस।
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाई गइले, मारी रे करेजवा में ठेस!
भिखारी ठाकुर
बिहार में उस खांटी नाच शैली की मौत हो चुकी है, जिसके लिए भिखारी को पहचाना जाता है. सभ्य नाच या बिदेसिया शैली के आविष्कारक भिखारी ठाकुर ही थे. औरतों की ड्रेस पहन लडक़ों या पुरुषों के नाचने की परंपरा यानी लौंडा नाच भी अब स्वतंत्र रूप से खत्म हो चुका है.
जिस अंग्रेजी राज के खिलाफ नाटक मंडली के माध्यम से वह जीवन भर जनजागरण करते रहे, बाद में उन्हीं अंग्रेजों ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी. भिखारी ठाकुर ने भरपूर उम्र जीया 83 साल की उम्र में 10 जुलाई, 1971 को ‘भोजपुरी के शेक्सपियर’ भिखारी ठाकुर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
(लेखक डॉ.ओम प्रकाश वीमेंस कॉलेज रांची में बीएड विभाग के सहायक प्राध्यापक हैं)