Bhopal: गैस कांड के करीब 30 साल बाद गैस पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी में डीएनए संरचना में बदलाव की जांच शुरू हो गई है. इसके लिए 300 गैस पीड़ित परिवार चिन्हित किए गए हैं. इन पर रिसर्च कर पता लगाया जाएगा कि गैस पीड़ितों की अगली पीढ़ी में क्रोमोजोम व डीएनए में किस तरह के बदलाव हुए हैं. इस रिसर्च के शुरुआती रिजल्ट इस वर्ष अक्टूबर तक आने की उम्मीद है.
गैस पीड़ितों पर यह रिसर्च राजधानी स्थित इंडियन काउंसिल फॉर मेडिसिन रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन इंवायरमेंट एंड हेल्थ (निरेह) द्वारा कराई जा रही है. डीएनए व क्रोमोजोम में बदलाव के संकेत के रूप में मानसिक विकलांगता व जन्मजात विकृति को माना गया है.
आईसीएमआर ने गैस कांड के तुरंत बाद 19984-85 में इस तरह की रिसर्च शुरू की थी, जो दस साल चली, लेकिन कभी पब्लिश नहीं की गई। इसमें बताया गया था कि यूनियन कार्बाइड से निकली जहरीली गैस से पीड़ितों में 3 से 4 प्रतिशत जनसंख्या में डीएनए संरचना में बदलाव के सबूत मिले थे.
गैस पीड़ितों पर होने जा रही रिसर्च में वैज्ञानिक केवल फील्ड पर जाकर ब्लड सैंपल व मेडिकल रिकॉर्ड ही प्राप्त नहीं करेंगे, बल्कि रिसर्च में शामिल गैस पीड़ितों को विश्वास में लेने के लिए उनकी काउंसलिंग भी की जाएगी. रिसर्च के दौरान परिवारों की बीमारी से संबंधित पूरी हिस्ट्री पता की जाएगी.
सात प्रोजेक्ट पर रिसर्च
2010 में गैस कांड पर बने मंत्री समूह की अनुशंसा पर बने निरेह में सात प्रोजेक्ट को रिसर्च के लिए मंजूरी मिल गई है. इसमें जन्मजात विकृतियां, क्रोमोजोम व डीएनए परिवर्तन, गैस पीड़ितों में कैंसर व यूका के आसपास जहरीले पानी के प्रभाव जांचने के प्रोजेक्ट शामिल हैं. निरेह ने इनमें से कई प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू कर दिया है.
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