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जरूरी है लैंगिक अल्‍पसंख्‍यकों की बेहतर मीडिया रिर्पोटिंग: हमसफर ट्रस्‍ट

जरूरी है लैंगिक अल्‍पसंख्‍यकों की बेहतर मीडिया रिर्पोटिंग: हमसफर ट्रस्‍ट

New Delhi: LGBTQ यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्‍सुअल, ट्रांसजेंडर और क्‍यूरी ये सभी लैंगिक अल्‍पसंख्‍यक कहे जाते हैं. ये समाज का एक ऐसा वर्ग रहा है जिसे अक्‍सर अलगर नजरिये से देखा जाता है. इनसे जुडे मीडिया रिपोर्टिंग में भी कई बार शीर्षकों और कंटेंट में यह भाव देखने को मिल जाता है. इसका पूरे समाज में विपरीत प्रभाव पडता है. इस बीच हमसफर ट्रस्‍ट कई सहयोगी संस्‍थाओं के साथ मिलकर एलजीबीटीक्‍यू पर रिपोर्टिंग कर रहे पूर्वी भारत के कई राज्‍यों के पत्रकारों के लिए दिल्‍ली में एक कार्यशाला आयोजित किया.

मीडिया पेशेवरों के लिए ‘लिखो एलजीबीटीक्यू+ उत्तरी क्षेत्र शिखर सम्मेलन – लॉजिस्टिक्स नोट’ सेमिनार में झारखंड में मीडिया रिपोर्टिंग कर रहे 10 पत्रकारों के साथ उत्‍तरी भारत के 35 से अधिक पत्रकारों ने भाग लिया. इस दौरान झारखंड के पत्रकारों ने पूरे देश से आये प्रतिनिधियों के सामाने एलजीबीटीक्यू के सकारात्‍मक बदलावों पर की गई रिपोटिंग पर अपने अनुभव झासा किया.

हमसफर ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष अशोक राव कवि ने कहा कि प्रसार माध्‍यमों में समलैंगिक लोगों को सहिष्‍णुता से प्रस्‍तुत नहीं किया जाता है. आज भी समलैंगिक लोग घृणा और उपहास की दृष्टि से देखे और प्रस्‍तुत किये जाते हैं. उन्‍हें पश्चिमी सभ्‍यता का अंधानुकरण करने वाले और समाज विरोधी लोगों में गिना जाता है.

उन्‍होंने कहा कि प्रसार माध्‍यमों में जो लैंगिक अल्‍पसंख्‍यकों का सनसनीखेज, अवैज्ञानिक एवं एकतरफा इमेज पेश किया जााि है, उसमें बदलाव आना चाहिए.

समलैंगिक (गे), उभयलैंगिक (बायसेक्‍सुअल), तृतीयपंथी (ट्रांसजेंडर) इस समाज को भारत में लैंगिक अल्‍पसंख्‍यक कहते हैं. आज का समाज इस कश्‍मकश में है कि 21वीं सदी में इस समाज के लोगों का साथ दें या विरोध करें. अलग-अलग प्रसार माध्‍यमों के जरिए समलैंगिक लोगों के विषय घर-घर में पहुंच चुके हैं.

इन मुद्दों पर लैंगिक अल्‍पसंख्‍यकों को किस नजरिये से देखा जाता है, उनके विषय की प्रस्‍तुति किस तरह से की जाती है यह बहुत जरूरी है. अधिकतर लोगों के विचार धार्मिक और सांस्‍कृतिक मूल्‍यों पर आधारित होने के बावजूत कई तरह के विचार समाज के सामने लोने का काम प्रसार माध्‍यम करते हैं. इसलिए प्रसार माध्‍यमों की तरफ से लैंगिक अल्‍पसंख्‍यक समाज की प्रस्‍तुति अचूक और योग्‍य तरीके से हो यह अपेक्षा की जाती है.

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कार्यक्रम में वक्ताओं ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि कैसे ज्यादातर मीडिया एलजीबीटीक्पू प्लस समुदाय से संबंधित खबरों को पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखता है, जैसे–गे पार्टनर की हत्या, समलैंगिक हुए लूटपाट का शिकार, गे फिल्म मेकर ने बनाई फिल्म…..वक्ताओं ने कहा कि इस समुदाय के लोगों को महज सेक्सुएलिटी के तराजू में तौलकर लिखा जाता है जो गलत है.एक गे फिल्ममेकर भी किसी दूसरे फिल्म मेकर की तरह या उससे ज्यादा प्रतिभावान हो सकता है.उस शीर्षक में ‘गे’ का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं था फिर भी मीडिया गाहे बगाहे इस्तेमाल करता ही है.

कार्यक्रम का संचालन हमसफर ट्रस्ट की रीजनल प्रोग्राम मैनेजर (N and E) आकृति कपूर ने किया.कार्यक्रम में अतिथियों ने एलजीबीटी समुदाय से जुडे लीगल अपडेट साझा किए .वक्ता ओं ने खुलकर एच आई वी और एड्स पर बातचीत की. हालांकि वक्ताओं ने कहा कि एलजीबीटीक्यूप्लस समुदाय के बारे में यह मिथ है कि वह एच आई वी का करियर है.

दर असल इस समुदाय में शिक्षा और अवसर के अभाव की वजह से कई लोग आजीविका के लिए ऐसा रास्ता पकड लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होता है. कई जब एच आईवी के शिकार हो जाते हैं तब वे अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं जानते. ऐसे में मीडिया में जागरूकता भरा लेखन लोगों को जागरूक कर सकता है.

इस समिट में उत्तर और पूर्वी क्षेत्र के राज्यों कश्मीर, त्रिपुरा, बिहार, यूपी, झारखण्ड और अन्य इलाकों से पत्रकारों ने भाग लिया.

पिछले 10 सालों से रांची में डिजिटल मीडिया से जुड़ाव रहा है. Website Designing, Content Writing, SEO और Social Media Marketing के बदलते नए तकनीकों में दिलचस्‍पी है.

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