Ranchi: झारखंड राज्य समन्वय समिति ने आज झारखंड के राज्यपाल से राजभवन जाकर मुलाकात की और ज्ञापन सौंपा. इस ज्ञापन के जरिए समन्वय समिति ने झारखंड सरकार के तीन विधेयकों के वापस किये जाने पर अपनी आपत्ति जताई.

ज्ञापन में कहा गया है कि दिशोम गुरू, श्री शिबू सोरेन ने महाजनों एवं सामन्तवादी व्यवस्था के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसके फलस्वरूप झारखण्ड अलग राज्य का गठन हुआ. उनके साथ इस लड़ाई में लाखों आन्दोलनकारी शामिल हुए और सैकड़ों शहीद निर्मल महतो जैसे उनके साथी ने अपने प्राणों की आहुति दी. उनकी यह लड़ाई न केवल इस राज्य के आदिवासी / मूलवासी को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए था, बल्कि यह झारखण्डी अस्मिता एवं पहचान से भी जुड़ा हुआ था.
ज्ञापन में राज्यपाल से समन्वय समिति ने कहा है कि अवगत हैं कि दिसम्बर, 2019 में अपार जनसमर्थन पाकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कॉंग्रेस एवं राष्ट्रीय जनता दल की गठबंधन सरकार ने मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में कार्य करना प्रारंभ किया. वर्त्तमान गठबंधन सरकार पहले दिन से ही आदिवासी, दलित, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यक वर्ग के हितों को ध्यान में रखकर उनके समग्र विकास एवं कल्याण के लिए विभिन्न योजनाओं को अमलीजामा पहना रही है.

वर्त्तमान गठबंधन सरकार दिशोम गुरू, श्री शिबू सोरेन एवं शहीद निर्मल महतो जैसे अनेकों आन्दोलनकारियों के सपनों को साकार करने हेतु कृतसंकल्पित है। इसी कड़ी में सरकार ने तीन महत्वपूर्ण विधेयकों यथा ” ( 1 ) झारखण्ड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 (2) झारखण्ड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 एवं ( 3 ) झारखण्ड (भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण) विधेयक, 2021″ विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल सचिवालय को अनुमोदन हेतु भेजा था. इन विधेयकों से ना केवल यहाँ के लोगों की अस्मिता एवं पहचान जुड़ी हुई है बल्कि यहाँ के पिछड़े, दलित एवं आदिवासियों के हक एवं अधिकार भी इनसे जुड़े हुए हैं. साथ ही जिस प्रकार से विगत आठ-नौ वर्षों में देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने का सुनियोजित प्रयास हुआ है उसमें झारखण्ड (भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण ) विधेयक, 2021” विधेयक अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाता है.
कहा गया है कि राज्य सरकार ने इन सभी विधेयकों को भली-भांति एवं कानूनी तौर पर परखने के उपरांत ही विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल सचिवालय को अनुमोदन हेतु प्रेषित किया था, परन्तु राज्यपाल सचिवालय द्वारा कुछेक बिंदुओं पर आपत्ति कर इन्हें सरकार को लौटा दिया गया. परन्तु यह अत्यंत ही खेदजनक है कि ऐसा करते वक्त भवदीय के सचिवालय के द्वारा संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया एवं इसे बगैर आपके संदेश के वापस कर दिया गया.
महोदय, राज्यपाल सचिवालय द्वारा विधेयक को वापस करते समय भारत के संविधान के अनुच्छेद – 200 के तहत माननीय राज्यपाल महोदय का संदेश संलग्न करना एक संवैधानिक जरूरत है जिसके बगैर राज्य सरकार के द्वारा त्रुटियों का निराकरण कर पुनः विधान सभा में विधेयक को पेश करने में वैधानिक कठिनाई हो रही है. महोदय, यहाँ यह भी उल्लेख करना समीचीन होगा कि पूर्व में जो भी विधेयक त्रुटि निवारण हेतु लौटाये गये हैं, वे संविधान में निहित विहित प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद – 200 के तहत लौटाये गये हैं. इस पत्र के साथ तत्कालीन माननीय राज्यपाल, झारखण्ड, श्री सैय्यद सिब्ते रजी एवं माननीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा लौटाये गये दो विधेयकों में संलग्न राज्यपाल सचिवालय के पत्रों की प्रति भी आपके सुलभ अवलोकन हेतु संलग्न की जा रही है.
महोदय, संविधान के संरक्षक होने के साथ-साथ आप दलित, आदिवासी, पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों के प्रति भी विशेष स्नेह रखते हैं, जिनके उत्तरोतर कल्याण के निमित इन तीनों विधेयकों पर आपका सकारात्मक निर्णय अपेक्षित है. वर्तमान गठबंधन की सरकार आदिवासी, दलित, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यक समुदाय के हित में इन विधेयकों को पुनः विधान सभा से पारित कराकर इन्हें कानूनी अमलीजामा शीघ्रताशीघ्र पहनाने के लिए कृतसंकल्पित है. इसके लिए आवश्यकता पड़ेगी तो विधान सभा का विशेष सत्र भी सरकार बुला सकती है.
अतः आपसे विनम्र आग्रह है कि राज्य सरकार के अनुरोध के अनुरूप संविधान के अनुच्छेद-200 के अंतर्गत अपने संदेश के साथ उक्त विधेयकों को वापस करने की कृपा की जाय. ताकि सरकार इन तीनों विधेयकों को पुनः विधान सभा से पारित कराकर आपके समक्ष स्वीकृति हेतु उपस्थापित कर सके.
शुभकामनाओं सहित ।