झारखंड में 19 फरवरी से हर साल इटखोरी महोत्सव का आयोजन हो होता है. यह तीन दिन का महोत्सव है जो सनातन जैन और बौद्ध धर्म के संगम स्थल पर मनाया जाता है. इटखोरी महोत्सव की शुरुआत 2015 में स्थानीय सांसद सुनील कुमार सिंंह की पहल पर हुई थी. इस महोत्सव का उद्देश्य पर्यटन विकास को बढ़ावा देना था.
इटखोरी महोत्सव को राजकीय उत्सव का दर्जा 2016 में प्राप्त हुआ था. यह महोत्सव अब झारखंड के चतरा जिले का सबसे बड़ा महोत्सव बन गया है. इसके आयोजन के पीछे नक्सलियों द्वारा इस क्षेत्र में दिए गए विस्फोट के दाग को धोना भी एक उद्देश्य था. इस महोत्सव ने मां भद्रकाली मंदिर परिसर के साथ जिले के धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के विकास का भी द्वार खोला है.
इस महोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में उत्साह और उमंग का माहौल रहता है. यह जिले के श्रद्धालु भक्तों और पर्यटकों के बीच गुलजार होता है.
इटखोरी महोत्सव का उद्देश्य क्या है?
इटखोरी महोत्सव का प्रमुख उद्देश्य पर्यटन विकास को बढ़ावा देना है. यह तीन दिन का महोत्सव है जो सनातन जैन और बौद्ध धर्म के संगम स्थल पर मनाया जाता है. इसके साथ-साथ, इस महोत्सव का उद्देश्य झारखंड के चत्रा जिले के धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के विकास को बढ़ावा देना भी है. इस महोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में उत्साह और उमंग का माहौल रहता है, जो जिले के श्रद्धालु भक्तों और पर्यटकों के बीच गुलजार होता है.
इटखोरी मंदिर परिसर में कौन से धार्मिक स्थल हैं?
इटखोरी मंदिर परिसर तीन धर्मों का संगम स्थल है। यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों की जानकारी निम्नलिखित है:
- भद्रकाली मंदिर: यह मंदिर मां काली के भद्र रूप को विराजमान करता है। यह स्थल चतुर्भुज शिवलिंग, हनुमान और भद्रकाली की प्रतिमाओं से भी भरपूर है। यह संगम स्थल हिन्दू धर्म का प्रभाव दर्शाता है.
- बौद्ध स्तूप: इस स्तूप में भगवान बुद्ध की 1004 छोटी और 4 बड़ी प्रतिमाएं हैं. यह स्थल बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाता है.
- सहस्र शिवलिंग: यह स्थल काफी अनूठा है, जिसमें एक ही पत्थर से बनाए गए 1008 शिवलिंग हैं। यहां के जलाभिषेक करने पर सभी शिवलिंगों का जलाभिषेक होता है.
इस मंदिर परिसर का इतिहास और पुरातात्विक महत्व भी बहुत है, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पुष्टि किया गया है.
इटखोरी मंदिर परिसर का इतिहास क्या है?
इटखोरी मंदिर परिसर का इतिहास बहुत ही रोचक है. यह एक संगम स्थल है जो तीन धर्मों का संगम है: हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म. यहां कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं:
- मां भद्रकाली मंदिर: यह मंदिर मां काली के भद्र रूप को विराजमान करता है. इसमें चतुर्भुज शिवलिंग, हनुमान और भद्रकाली की प्रतिमाएं भी हैं .
- बौद्ध स्तूप: यहां बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाने वाला एक स्तूप है, जिसमें 104 बोधिसत्व और चार प्रमुख बुद्ध की मूर्तियां हैं.
- शीतलनाथ जैन मंदिर: यहां शीतलनाथ, दसवीं जैन तीर्थंकर की पादचिह्न है. यहां एक जैन मंदिर की योजना भी है.
इटखोरी महोत्सव हर वर्ष फरवरी में आयोजित होता है और यहां के धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के विकास को बढ़ावा देने का भी उद्देश्य है. इस महोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में उत्साह और उमंग का माहौल रहता है, जो जिले के श्रद्धालु भक्तों और पर्यटकों के बीच गुलजार होता है.